दूरवर्ती वातावरण को प्रभावित करने की प्रक्रिया

February 1984

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सामान्यतया आवाज एक सीमित दूरी तक ही सुनाई पड़ती है। जैसे-जैसे दूरी बढ़ती जाती है, ध्वनि भी घटती या समाप्त होने लगती है। यही बात गर्मी के सम्बन्ध में भी कहीं जा सकती है। वह समीपवर्ती क्षेत्र को गरम करती है। निकट रहने पर ताप अधिक होता है और दूर हटने पर गर्मी भी घटने लगती है।

किन्तु विशेष उपाय उपचारों के माध्यम से आवाज, गर्मी, रोशनी आदि को भी दूर-दूर तक भेजा जा सकता है। तार, रेडियो, टेलीविजन आदि उपकरणों द्वारा यह तथ्य निरन्तर सामने आता रहता है। रेडियो स्टेशन से प्रसारित हुए शब्द संवाद क्षण भर में सहस्रों मील की यात्रा करते हुए कहीं से कहीं जा पहुँचते हैं। बिजली के तारों द्वारा गर्मी-रोशनी भी कहीं से कहीं पहुँचाई जा सकती है।

अब इस सन्दर्भ में कुछ नये आविष्कार सामने आये हैं। किसी स्थान से प्रसारित तरंगें किसी विशेष क्षेत्र में भेजी जा सकती हैं और वे वहाँ रहने वालों के मस्तिष्कों में इच्छित उथल-पुथल पैदा कर सकती हैं। अभी तक यह प्रयोग मात्र किन्हीं को रुग्ण या विक्षिप्त बनाने के सम्बन्ध में किये जाते रहे हैं। उसे शत्रु पक्ष की कार्य क्षमता नष्ट करने में मनःस्थिति विकृति के काम में लाया गया है, पर इस आधार पर यह सम्भावना भी बनती है कि यह प्रयोग उत्कर्ष और समाधान के हितकर एवं उच्चस्तरीय उद्देश्यों के लिए किया जाय तो उससे श्रेष्ठ स्तर का प्रयोजन भी सध सकता है। अभी प्रयोग किस निमित्त हुआ, इस पर अधिक ध्यान न देकर सोचना यह चाहिए कि इस माध्यम को श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए नियोजित करने से कल्याणकारी प्रयोजनों की पूर्ति भी तो हो सकती है।

कुछ समय पूर्व संसार भर के अखबारों में एक ऐसी रूसी आविष्कार का समाचार छपा था जिसमें एक विशेष प्रकार की रेडियो किरणों द्वारा कनाडा के उत्तरी भाग में बसे व्यक्तियों के मस्तिष्कों को ध्वनि आवृत्ति के माध्यम से अक्षम बना देने की चर्चा की।

यह शिकायत कनाडा ने अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उठाई। इस राष्ट्र के कई क्षेत्रों में ऐसा माहौल बना कि हर आदमी उदासी से ग्रसित हो गया। अपने को अस्वस्थ और अक्षम अनुभव करने लगा। इन लोगों को अपने दैनिक कार्य निपटाने की क्षमता भी घट गई और कारखानों दफ्तरों में नियत समय पर न पहुँच कर गैरहाजिर रहे।

कनाडा के दो खदान नगरों के श्रमिकों पर लगातार कई दिन तक यह शामत छाई रही। अधिकाँश काम पर गये ही नहीं। जो गये वे अपनी ड्यूटी सही तरह देने के स्थान पर कुछ का कुछ करने लगे। सिर दर्द, अनिद्रा, थकावट, बेचैनी, मितली, उदासी, उन पर बेतरह छाई रही। कुछ को चित्र-विचित्र आवाजें कानों में सुनाई पड़ती रहीं।

एक साथ लाखों लोगों का एक ही प्रकार की विपन्न मनोदशा से ग्रसित हो जाना, आश्चर्य की बात थी। कनाडा ने अनुमान लगाया कि यह रूस द्वारा छोड़ी गयी किसी रेडियो विकिरण की तरंगों का प्रभाव है। यों इसके पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत कर सकने जैसा कुछ उसके पास नहीं था। फिर भी अनुमान ने अफवाह का रूप धारण किया और वह संसार भर के समाचार पत्रों में छपा। ऐसा हो सकने की सम्भावना पर अनेक अनुमान लगाये गये और वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत किये गये।

एक बार ऐसी ही शिकायत अमेरिका ने भी की थी। उत्तर-पश्चिम के एक क्षेत्र अलास्का पर रूस ने ऐसा ही प्रयोग परीक्षण किया है। एक बार दोनों देशों में इसी कारण तनाव बढ़ गया व युद्ध की-सी स्थिति आ गयी थी।

इस सन्दर्भ में कहा जाता है कि शत्रु क्षेत्र को निष्क्रिय बनाने के लिए इस प्रकार की रेडियो तरंगों का प्रयोग परीक्षण बहुत समय से चला आ रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति लिण्डन जानसन के समय में भी वहाँ ऐसा ही आविष्कार होने की चर्चा छपी थी। चौकन्ना होकर रूस भी उस दिशा में मुड़ा और एक ऐसे अस्त्र का अन्वेषण करने में जुट गया जिससे किसी क्षेत्र विशेष के सैनिकों व नागरिकों को अस्थायी रूप से शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से अक्षम बना दिया जाय। वे साहस खो बैठें। अस्वस्थता अनुभव करें और आत्मसमर्पण की बात सोचें। उत्साह और साहस गिर जाने पर- शरीर और मस्तिष्क के साथ न देने पर प्रायः ऐसी ही स्थिति हर किसी की हो सकती है।

अब तक के युद्ध आयुधों में यह सबसे कम हानिकारक हथियार है। बड़े युद्धों में धन-जन की तात्कालिक हानि तो होती ही है, उससे भी बड़ी समस्या होती है अपंगों और अनाथों के निर्वाह की। नष्ट−भ्रष्ट इमारतें तथा कारखाने फिर खड़े करने की। यह सब युद्ध से भी महँगा पड़ता है। प्रस्तुत रेडियो विकिरण के आधार पर यह हो सकता है कि शत्रु पक्ष को अस्थायी रूप से असमर्थ बना दिया जाय। आत्मसमर्पण को पूरा करा लिया जाय। इसके उपरान्त उन्हें निर्वाह योग्य स्थिति में रहने देकर उस झंझट से बचा जाय जो युद्धोपरान्त की समस्याओं के रूप में संकट बनकर सामने आते हैं। अस्तु इस अस्त्र को सामान्य होते हुए भी असामान्य महत्व का माना जा रहा है और उसके प्रहार से बचने या लाभ उठाने के लिए सभी पक्ष चौकन्ने हैं।

इस गुप्त अस्त्र के बारे में कहा गया है कि आविष्कृत तरंगें रेडियो स्तर की तो हैं, पर है उससे सर्वथा भिन्न। वह वेरी हाई फ्रीक्वेंसी- अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी- माइक्रो फ्रीक्वेंसी एवं रेडार टेलीविजन तरंगों से भी भिन्न है। वे बिना मध्यवर्ती परावर्तकों के भी किसी भी वांछित क्षेत्र पर सीधी फेंकी जा सकती हैं।

रेडियो तरंगों में यह कठिनाई है वे किसी ट्रांजिस्टर जैसे माध्यम से ही पकड़ी जा सकती हैं। यह माध्यम न हो तो फिर प्रसारणों को सुन सकना कठिन है किन्तु यह बात इन नवीन आविष्कृत तरंगों के सम्बन्ध में नहीं है। उन्हें मानव मस्तिष्क की विद्युतीय क्षमता एवं तरंगों की आवृत्ति से तालमेल बिठाते हुए इस प्रकार का बनाया गया है कि जिस क्षेत्र विशेष में वे पहुँचें वहाँ के सभी निवासी इन्हें अनिच्छुक होते हुए भी अपनाने के लिए बाधित हों। रेडियो का बटन बन्द करके उसकी आवाज बन्द की जा सकती है, किन्तु मस्तिष्क को ऊपर चढ़ाने योग्य ऐसा कोई आवरण नहीं खोजा जा सका जो इन प्रेरित तरंगों के आक्रमण से बचाव कर सके।

यह तरंगें क्या हो सकती हैं, इस सम्बन्ध में लास-ऐन्जल्स के विकिरण विशेषज्ञ जोसेफ टॉड ने कहा है कि यह इन्फ्रा रेडियो स्तर की तरंगें हैं और किसी भी क्षेत्र को हल्के रूप में अथवा पूरी तरह अशक्त अक्षय बना सकता है। वे कम समय के लिए अथवा सर्वदा के लिए ऐसे रोग उत्पन्न कर सकती हैं जिनसे मनुष्य जीवित रहने पर भी कोई बड़ा पुरुषार्थ न कर सके।

मनुष्य शरीर एक समूची वैज्ञानिक प्रयोगशाला के समान है। उसमें प्रकृति को प्रभावित करने वाले सभी उपकरण भली-भाँति सुसज्जित हैं। वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए जो उपकरण काम में लाये जाते हैं वे सभी प्रसुप्त स्थिति में मानवी काय-कलेवर के अन्तर्गत विभिन्न शक्ति संस्थानों में विद्यमान हैं।

महामानवों ने समय-समय पर अपनी प्रचण्ड शक्ति से वातावरण बदला है और लोक चिन्तन के प्रवाह को आश्चर्यजनक मोड़ दिया है। सम्पर्क क्षेत्र के व्यक्तियों को परामर्श एवं दबाव से सुधारे बिगाड़े जाने की बात सभी जानते हैं। उसी जानकारी में यह तथ्य भी सम्मिलित किया जाना चाहिए कि दूरवर्ती कुछ लोगों को ही नहीं, व्यापक क्षेत्र के निवासियों को भी दिशा विशेष में चलने बदलने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।

मनस्वी महामानवों में यह शक्ति पुरातन काल से प्रखर रही है अब उस शक्ति को फिर से उभारने की आवश्यकता है ताकि बिगड़े हुए लोक चिन्तन को सुधारा और सत्प्रयोजन के लिए उभारा जा सके। रूस के आविष्कारक क्षेत्र विशेष के लोगों को जिस आधार पर अस्त-व्यस्त करने में एक सीमा तक सफल हुए हैं, उसी आधार पर मानवी सत्ता की समर्थ प्रयोगशाला में लगे उपकरणों द्वारा व्यापक क्षेत्र के जनमानस को सुधारा सम्भाला भी तो जा सकता है।


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