कागज पर कुछ लिखने के लिए कलम पहुँची तो उसने अकड़कर कहा- ‘मेरे गोरे चिट्ठे शरीर पर तुझ काली-कलूटी का स्पर्श क्या शोभा देगा। दूर हट, तेरे साथ अपना गौरव मैं भी क्यों घटाऊँ?’
स्याही बिना कुछ कहे वापस चली गई। कागज सफेद तो बना रहा पर मिलन के सौभाग्य से उसे वंचित ही रहना पड़ा। सफेदी उसकी बनी रही पर पत्र के रूप में परिणत होने को अवसर सदा के लिए हाथ से चला गया।