दुःखीजनों के रहनुमा (kahani)

March 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उमर बड़े नेक दिल और दुःखीजनों के रहनुमा थे। एक दिन उमर ने आकाश में उड़ते एक फरिश्ते को देखा जिसके हाथ में एक बड़ी सी पुस्तक थी। उन्होंने उसे पास बुलाकर पूछा− “इस पुस्तक में क्या है!” “इसमें उन लोगों के नाम है जो खुदा की इबादत करते हैं।” उन्होंने अपना नाम उस पुस्तक में देखा पर वह कहीं भी न मिला वे बड़े दुःखी हुए।

कुछ दिन बाद वही फरिश्ता एक छोटी पुस्तक लिए उधर से निकला, पूछने पर फरिश्ते ने बताया, “यह उन लोगों के नाम की पुस्तक है जिनकी खुदा इबादत करता है।” यह सुन खलीफा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या खुदा भी किसी की इबादत करता है। खुदा जिन खुशनसीबों की इबादत करता है उनके नाम देखने की उत्सुकता में खलीफा ने पुस्तक देखी तो उन्हें अपना नाम प्रथम दिखाई दिया। उन्होंने कहा− “मैं इस काबिल कैसे बन गया कि खुदा मेरी इबादत करने लगे।” तत्क्षण ही उनकी आत्मा ने कहा, “खुदा उनकी इबादत नहीं करता जो सिर्फ उनकी ही इबादत में लगा रहता है और उनका काम नहीं करता, खुदा की बनाई दुनिया को जो खुशनुमा बनाए रखे व खुदा के बनाए हर इन्सान को इन्सानियत का पाठ पढ़ाता रहे वह भी खुदा का प्यारा बेटा होता है।”

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles