मनुष्य का व्यक्तित्व व उसमें अंतर्निहित कृतत्व शक्ति वाणी में प्रसुप्त रहती है। मनुष्य के बोलचाल, सम्भाषण से ही विदित हो जाता है कि उसमें कितनी क्षमता है व उसका विनियोजन किस कार्य में किया जा सकता है।
−कारलायल
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