दूरदर्शिता अपनाने में ही कल्याण है!

March 1978

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छुट पुट समस्याओं के समाधान में हमारी बुद्धि और श्रमशक्ति का बहुत बड़ा भाग लगता है। ग्रन्थियों को सुलझाने और कठिनाइयों का हल निकालने के लिए हर बुद्धिमान व्यक्ति सामर्थ्य भर प्रयत्न करता है; पर यह भूल आमतौर से होती रहती है कि आज किन्हीं भी प्रत्यक्ष समस्याओं को ही समस्या माना जाता है। जो कठिनाई कुछ समय पश्चात् आने वाली है उसकी ओर ध्यान नहीं जाता। इसी प्रकार लाभ हानि का लेखा जोखा पदार्थों की बहुलता और व्यक्तियों की सुगठता सहकारिता के आधार पर लिया जाता है। गुण, कर्म, स्वभाव की श्रेष्ठता और क्षमताओं की अभिवृद्धि का महत्व इसलिए भुला दिया जाता है कि उनका प्रत्यक्ष एवं तात्कालिक लाभ दिखाई नहीं देता।

यदि दूरदर्शिता की दिव्य दृष्टि अपनाई जा सके तो समस्याओं का स्वरूप दूसरे ही ढंग से सामने आ उपस्थित होगा। तब आज की बड़ी समझी जाने वाली समस्याएँ छोटी और उपेक्षा के गर्त में पड़ी हुई समस्याएँ दिखाई देंगी। यदि वस्तुस्थिति समझी जा सके तो गुत्थियों के हल करने के क्रम में उन्हें अधिक महत्व देना होगा तो तत्काल तो कोई बड़ी कठिनाई उत्पन्न नहीं कर रहीं पर निकट भविष्य में भयंकर आशंकाओं का संकेत देती है।

अभी बचपन है। खेलकूद में समय गँवाया जा सकता है और अभिभावकों के सिर पर गुजारा हो सकता है। पर सदा तो वह स्थिति रहने वाली नहीं है। खेलने के दिन लद जायेंगे और कठिन उत्तरदायित्व अपने ही कंधे पर ढोने होंगे। यदि यह तथ्य सामने रहे तो प्रत्येक किशोर को युवावस्था की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उसकी तैयारी में संलग्न होना होगा। उपार्जन की क्षमता उत्पन्न करने वाली शिक्षा का महत्व समझना पड़ेगा और उसमें तत्परतापूर्वक संलग्न होना होगा। इसी प्रकार आज जिस मौज मस्ती में ही सारा समय और मन लगा रहता है उस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता अनुभव होगी। जो व्यवहार कुशलता युवावस्था में अपनानी पड़ेगी उसका अभ्यास किशोरावस्था में ही आरंभ करने में समझदारी है। यदि दूरदर्शिता जग सके तो प्रत्येक किशोर को समर्थ और सफल युवावस्था के लिए आवश्यक क्षमताएँ जुटाने में लगना होगा। ऐसी दशा में उसके तात्कालिक खेल खिलवाड़ों में मन सकोड़ने की आवश्यकता अनुभव होगी। ताकि भविष्य का उचित निर्माण सही ढंग से कर सकना संभव हो सके।

दुकानदार अपना कारोबार आरंभ करता है। तात्कालिक लाभ की दृष्टि से उसे लगता है कि सस्तेपन का आकर्षण देकर ग्राहकों को लुभाया जाय और उन्हें घटिया वस्तुएँ कम नाप तोल से देकर अधिक लाभ उठा लिया जाय। वह इसी नीति को अपनाता है और जल्दी धनवान बन जाने के स्वप्न देखता है। धंधा आरंभ में चमकता भी है, पर वस्तुस्थिति देर तक छिपी नहीं रहती, तथ्य उभर कर सामने आये बिना रह नहीं सकते। लोगों को वह चालाकी विदित होनी ही थी। धीरे धीरे सस्तेपन के अथवा चापलूसी के प्रलोभन से आकर्षित हुए सारे ग्राहक टूट जाते हैं। इतना ही नहीं वे अपने परिचितों को उस दुकानदार से सचेत रहने की बात भी कहते हैं। फलतः उस अदूरदर्शी दुकानदार का कारोबार ठप्प हो जाता है और जल्दी अमीर बनने की ललक उल्टे उसे स्थायी दरिद्रता के गर्त में धकेल देती है। यह अदूरदर्शिता का ही परिणाम है। यदि उसने ग्राहकों के ऊपर अपनी ईमानदारी एवं प्रामाणिकता की छाप डालने के दूरगामी लाभ हो समझा होता तो आरंभ में धैर्य रखकर ईमानदारी की नीति अपनाई होती। इस मार्ग पर जो लोग चले हैं उनका व्यापार क्रमशः बढ़ता ही गया है। विश्वास बढ़ने से सहयोग बढ़ता है और जिसके जितने सहयोगी हों वह उतना ही प्रगतिशील बनता चला जाता है।

शक्तिकोष को युवावस्था में ही खर्च कर डालने पर वृद्धावस्था की गाड़ी खींचना कितना कठिन पड़ता है; यदि यह बात ध्यान में रखी जा सके तो समय रहते सचेत होने और संयम बरतने की आवश्यकता अनुभव होगी। युवावस्था में बरता गया आहार बिहार का संयम उस समय तो कठोर प्रतिबंध जैसा असुविधाजनक लगता है पर पीछे जब वृद्धावस्था में भी प्रौढ़ता का आनंद और सुखी दीर्घ जीवन का लाभ मिलता है तब पता चलता है कि दूरदर्शिता की नीति अपनाने में कितना बड़ा लाभ है।

अनाचार की नीति आमतौर से इसलिए अपनाई जाती हैं कि उससे तात्कालिक लाभ मिलता है। चोरी, बेईमानी, ठगी, चालाकी जैसे कुकृत्य करने वाले देखते हैं कि तनिक सी चतुरता और हिम्मत दिखाकर कितना बड़ा लाभ सहज ही उठा लिया गया; यदि उतना ईमानदारी से कमाना पड़ता तो बहुत समय लगता और श्रम करना पड़ता। इस प्रकार सोचने पर उस समय लगता है कि अनाचार अपनाने में लाभ और सदाचार से हानि है; किन्तु जब दूरगामी परिणाम देखे जाते हैं तब पता चलता है कि वह तात्कालिक लाभ कितना महंगा पड़ा और अन्ततः कितना दुखदायी सिद्ध हुआ। स्पष्ट है कि अनाचार छिपता नहीं। पाप में सबसे बड़ी कमी एक ही है कि वह खुले बिना रहता नहीं। कुछ समय कुछ लोग भ्रम में भी रह सकते हैं पर सदा सबको अँधेरे में नहीं रखा जा सकता। बेईमान व्यक्ति की करतूतें जब प्रकट होती है तब लोग उससे बचते और घृणा करते हैं। अप्रामाणिक समझा जाने वाला व्यक्ति अपना सम्मान और विश्वास खो बैठता है। तब उसे न केवल असहयोग का वरन् विरोध का भी सामना करना पड़ता है। समाज तिरस्कार, राजदंड के अतिरिक्त आत्म प्रताड़ना की प्रबल पीड़ा भी उसे सहन करनी पड़ती है। ऐसे व्यक्ति मित्र रहित, विश्वास रहित, सम्मान रहित असफल एवं निरानंद जीवन जीते हैं। श्मशान निवासी भूत पलीतों से ऐसे लोगों की मनःस्थिति तनिक भी अच्छी नहीं होती भले ही वे अनीति के आधार पर कितना ही धन वैभव क्यों न इकट्ठा कर लें। इस प्रकार का उपार्जन दुर्व्यसनों में ही नष्ट होता है और उससे व्यक्तित्व के विनाश की गति और भी तीव्र हो जाती हैं।

आतंकवादी दुष्टता अपना कर कई लोग समीप वर्ती लोगों को भयभीत करते हैं। उन्हें त्रास देकर अनुचित लाभ उठाते हैं। तत्काल यह नीति लाभदायक प्रतीत होती है, पर सर्वत्र शत्रुता के बीज बोने वाले यह लोग बेमौत मरते और जड़मूल से उखड़ते हैं। उनकी अपनी ही चाण्डाल चौकड़ी में फूट पड़ती हैं और वे एक दूसरे के विनाश में संलग्न होकर मुन्द उपमुन्द की तरह परस्पर मर कट कर समाप्त होते देखे जाते हैं। अनीति प्रयोजनों को लेकर स्थापित हुई मित्रता में दीर्घजीवन कहाँ होता है? वह पानी के बबूले की तरह पहले क्षण उठती और दूसरे क्षण टूटती देखी जा सकती है। आतंक अजेय तभी तक है जब तक प्रतिरोधी शक्तियाँ प्रसुप्त पड़ी रहती हैं, यदि वे जाग पड़ें तो गुण्डागर्दी का सिर कुचल जाने में भी देर नहीं लगती।

अदूरदर्शिता का एक बेहूदा रूप अपव्यय है। फिजूल खर्ची की कोई सीमा नहीं। कितनी ही आमदनी होने पर भी उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। जेब में आये पैसे को फूँके बिना चैन नहीं पड़ता। आवश्यक अनावश्यक का ध्यान नहीं रहता, विलासिता की चीजें खरीदने ठाठ बाट बनाने और लोगों पर अमीरी का रौब जमाने में ढेरों पैसा उड़ जाता है। जब आवश्यक वस्तुओं की कमी पड़ती हैं तो कर्ज लेते, उधार माँगते, बेईमानी करते हैं। ऐसे लोग सदा अभाव ग्रस्त स्थिति में रहते हैं। संचित सम्पत्ति को फूँकते हैं और जब परिवार के आवश्यक उत्तरदायित्वों के लिए पैसे की जरूरत पड़ती हैं तो बगलें झाँकते हैं। शिक्षा, चिकित्सा, विवाह शादी आकस्मिक दुर्घटना एवं आवश्यकता के अवसर सामने आने पर ऐसे लोग कितने चिन्तित और कितने असहाय होते हैं उसे देखकर उनकी उस अदूरदर्शिता पर क्षोभ उठता है जो उनने फिजूलखर्ची की बुरी आदत की तरह अपने आप अपने कंधों पर ओढ़ी।

बच्चों की संख्या बढ़ाते समय लोग यह नहीं सोचते कि इन बालकों के निर्वाह, शिक्षा, चिकित्सा, स्वावलम्बन, विवाह आदि के लिए कितने पैसे की जरूरत पड़ेगी। उन्हें समुचित संस्कार, और दुलार देने के लिए कितना समय लगाने और कितने साधन जुटाने की आवश्यकता होगी। आँखें मींचकर बच्चे उत्पन्न करने वाले आरंभ में तो इसमें कोई बड़ी हानि नहीं सोचते; पर जब उन बालकों के लिए आवश्यक साधन जुटाने में अपनी आजीविका एवं योग्यता स्वल्प दीखती हैं तब पता चलता है कि भूल कितनी बड़ी हो गई। यदि साधन स्वल्प थे तो बिना विवाह के रहा जा सकता था अथवा बिना बच्चे का सुविधा पूर्ण गृहस्थ चल सकता था। अदूरदर्शी व्यक्ति आरंभ में ऐसा कुछ नहीं सोचते पर जब विपत्ति सिर पर लद जाती तो पछताते हैं। समय चूक जाने पर वह पछताना भी तो काम नहीं आता।

धन की तरह समय की सम्पत्ति है। समय की सम्पदा का सदुपयोग करके स्वास्थ्य, शिक्षा, कला, अनुभव परमार्थ जैसी कितनी ही बहुमूल्य उपलब्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं किन्तु यदि आलस्य और प्रमाद में आवारागर्दी और मटरगश्ती में वह समय ऐसे ही गँवाते रहा जाये तो व्यक्तित्व थोथा सारहीन रह जायगा। विशेषताओं के अभाव महत्वपूर्ण सफलताएँ कहीं मिलती हैं। ऐसे लोग किसी प्रकार मौत के दिन पूरे करने वाली निरर्थक जिन्दगी का भार ढोते हैं; भविष्य के बारे में जिन्हें चिन्ता नहीं होती, केवल आज की अभी की सुविधा ही जिनके लिए सब कुछ रहती है वे लोग ओछी और उथली गति विधियाँ अपनाते हैं और दुर्भाग्य का रोना रोते हुए संसार से विदा होते हैं।

जीवन भगवान का दिया हुआ सबसे बड़ा उपहार हैं। मनुष्य को बनाने में उसका सारा कला कौशल लगा है। जीव को दिये जा सकने वाले उपहारों में यही सबसे बड़ा ईश्वरीय अनुदान है। इतना बहुमूल्य साधन प्राप्त करके पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। महानता की ऐसी उपलब्धियाँ मानव जीवन में सम्मिलित हैं जिनके सहारे स्वयं भव सागर से पार हो सकना और असंख्यों को अपनी नाव पर बिठाकर पार कर सकना संभव हो सके। अदूरदर्शी व्यक्ति इस सुर सौभाग्य का महत्व नहीं समझते और ऐसे ही पेट प्रजनन जैसी पशु प्रवृत्तियों में उसे नष्ट कर देते हैं। किन छोटी योनियों को पार करते हुए कितनी लम्बी यात्रा करने के उपरान्त जो मिला है उसे उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में लगा दें, समझदारी इसी में थी। पर अदूरदर्शिता की करतूत तो देखिये, प्रस्तुत उपहार से लाभान्वित होने के स्थान पर पापों की पोटली सिर पर बाँध ली जाती हैं। फिर उसके दंड भुगतने में मृत्यु के उपरांत चिरकाल तक कष्ट कर नारकीय यंत्रणाओं का त्रास सहना पड़ता है।

मृत्यु जीवन का अन्तिम अतिथि हैं। वही सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी हैं। उसी अवसर पर प्राणी के दीर्घ कालीन भविष्य का फैसला होता है। तुच्छ योनियों से आगे बढ़ते लाखों वर्षों में मनुष्य योनि तक पहुँच पाना संभव हुआ हैं। यदि जीवन के सदुपयोग का लेखा जोखा प्रस्तुत करने के आधार पर भविष्य निर्धारण होने की वेला में−हम खोटे सिद्ध हुए तो अगले जन्मों में फिर तुच्छता ही पल्ले बँधेगी। अस्तु दूरदर्शिता इसी में है कि न्याय की निर्णायक घड़ी में हम निर्दोष सिद्ध होने की तैयारी करने का आरंभ से ही ध्यान रखें। मुकदमे का फैसला अपने पक्ष में चाहने वाले काफी समय पहले से ही दौड़ धूप करते हैं और सबूत गवाह जुटाने के लिए समय तथा धन खर्च करते हैं। मनुष्य जीवन श्रेष्ठतापूर्वक जिया गया इसके प्रमाण एकत्रित करने के लिए हमारी चेष्टाएँ आरंभ से ही रह सकें तो समझना चाहिए कि निर्णायक घड़ी के लिए हम पर्याप्त साधन जुटा सकते हैं। उच्च पद पाने के लिए सरकारी परीक्षाएँ तथा प्रतियोगिताएँ होती हैं और जो उस कसौटी पर खरे सिद्ध होते हैं वे घोषित उच्च पद प्राप्त करते हैं। मृत्यु का दिन ऐसा ही निर्णायक दिन है जबकि भविष्य में देवात्मा−परमात्मा की स्थिति प्राप्त करने के पद उपहार मिलते हैं। इसके लिए बहुत दिन पहले से ही तैयारी करनी पड़ती है। उसे सफलतापूर्वक कर सकना मात्र दूरदर्शियों के लिए ही संभव होता है। अदूरदर्शी तो खाओ, पियो, मौज उड़ाओ की नीति अपना कर अपने वर्तमान और भविष्य को अन्धकार पूर्ण बनाने में ही लगे रहते हैं।

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