वृक्षारोपण का पुण्यफल

March 1978

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वृक्षारोपण ऐसा परमार्थ है जो मात्र श्रम एवं उत्साह की सहायता से ही संभव हो जाता है। खाली जमीनों पर फलदार एवं जलाऊ लकड़ी के पेड़ लगाये जा सकते हैं। वन सम्पदा के वृद्धि से (1) अधिक वर्षा होने (2) भूमि का कटाव रुकने (3) जमीन की उर्वरता बढ़ने (4) मौसम का संतुलन बनने (5) उपयोगी प्राण वायु प्राप्त होने (6) फल छाया एवं लकड़ी मिलने (7) हरीतिमा का उपयोगी मानसिक प्रभाव पड़ने (8) पशु पक्षियों को आश्रय मिलने जैसे अनेकों लाभ हैं। धर्मशास्त्रों में वृक्षारोपण को परम पुण्य बताया गया है। आगामी वर्षा ऋतु निकट है। हमें उस समय अपने−अपने क्षेत्रों में वृक्ष, पुष्प, शाक आदि उगाने एवं तुलसी लगाने की अभी से तैयारी करनी चाहिए। साथ ही अनावश्यक रूप से वृक्ष काटने को रोकना भी चाहिए।

कीर्तिश्च मानुषे लाके प्रेत्य चैव शुभं फलम्। लभ्यते नाकपृष्ठे च पितृभिश्च महीपते॥

देव−लोक गतस्यापि नाम तस्य न नश्यति। अतीतनागतश्चैव पितृवंशाश्च भारत॥

तारयेत् वृक्षरोपीतु तस्माद् वृक्षान् प्ररोपयेत।

−महा भारत

“भरतनन्दन! वृक्ष लगाने में मनुष्य−लोक में कीर्ति बनी रहती है और मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग लोक में शुभ फल की प्राप्ति होती है। वृक्ष लगाने वाला पुरुष पितरों द्वारा भी सम्मानित होता है देवलोक में जाने पर भी उसका नाम नष्ट नहीं होता; वह अपने बीते हुए पूर्वजों और आने वाली सन्तानों को भी तार देता है। अतः वृक्ष अवश्य लगाने चाहिये।

तस्य पुत्रा भवन्त्येव पादपा नाच संशयः॥ परलोक गतः र्स्वगे लोकांश्चाप्नोति सोव्ययान्॥

−महा0

जिसके कोई पुत्र नहीं हैं उसके वृक्ष ही पुत्र होते हैं, इसमें संशय नहीं है वृक्ष लगाने वाला पुरुष परलोक में जाने पर स्वर्ग में अक्षय लोकों को प्राप्त करता है।

पुष्पैः सुरागणान् वृक्षाः फलैश्चापि तथापितृन्। छायया चातिथींस्तात पूजयन्ति महोरुहाः॥

−महा0

“तातः वृक्ष अपने फूलों से देवताओं का फलों से पितरों का तथा छाया से अतिथियों का सदा पूजन करते रहते हैं।

भूमि दानेनयेलोका गोदानेन च कीर्तिताः। ताल्लाकान्प्राप्नुयान्मर्त्यः पादपानां प्ररोपणे॥

−लिखित

भूमि के दान से जो लोक प्राप्त होते हैं और जो गौ के दान के बतलाये हैं। उन्हीं लोकों को वृक्षों को लगाने से मनुष्य पाता है।

पुष्पिताः फल वन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान्। वृक्ष दान पुत्र वद् वृक्षाः तारयन्ति परम च॥ तस्मात् तटाके वृक्षा वै रोप्याः श्रेयोऽर्थिना सदा॥

−दक्ष स्मृति

फल और फूलों से भरे हुये वृक्ष इस जगत् में मनुष्यों को तृप्त करते हैं जो वृक्ष, दान करते हैं उनको वे वृक्ष परलोक में पुत्र की भाँति पार उतारते हैं। अतः कल्याण की इच्छा चाहने वाले को सदा ही सरोवर के किनारे वृक्ष लगाना चाहिये।

त्रि लौकेषु च गल्याणां वृक्षाणां देव पूजने। प्र धान रूपा तुलसी भविष्यति वरानने।

−ब्रह्म वैवर्त

तीनों लोकों में जितने भी गुल्म एवं वृक्ष है उन सब में तुलसी सबसे श्रेष्ठ है।

इन्छनार्थमशुष्काणां द्रुमाणामवपातनम। आत्मार्थ च क्रिया रम्भा निन्दितान्नादनं तथा॥

−मनु0 11। 64

ईन्धन के लिये हरे वृक्षों का काटना और निन्दित अन्न को खाना उपपातक है।

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