रे! जीवन-तत्व लुटाता चल (kavita)

March 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अन्तघंट से ममता का मधु, तू रात-दिवस छलकाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

जब पीर कहीं गहरायी हो। जब आँख कहीं भर आयी हो॥ अपने आंचल से अरुण कपोलों पर के अश्रु सुखाता चख। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

कोई भावुक मवडडडड प्यासा हो। या गयी असीम निराशा हो॥ अपने उर से, आशा-उछाह-विश्वास वहां बरसाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

कोई उर दिखे अभाव ग्रस्त। जकडडडड की कुण्ठा से बहुत त्रस्त॥ अपने उदार सम्वेदन से उसके दुःख-दर्द मिटाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

जो हृदय बन गया हो मरुथल। चाहिए जिसे हो जल-शीतल॥ अपनी करुणा की गंगोत्री, उस हृदय हेतु सरसाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

-माया वर्मा

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118