रे! जीवन-तत्व लुटाता चल (kavita)

March 1978

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अन्तघंट से ममता का मधु, तू रात-दिवस छलकाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

जब पीर कहीं गहरायी हो। जब आँख कहीं भर आयी हो॥ अपने आंचल से अरुण कपोलों पर के अश्रु सुखाता चख। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

कोई भावुक मवडडडड प्यासा हो। या गयी असीम निराशा हो॥ अपने उर से, आशा-उछाह-विश्वास वहां बरसाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

कोई उर दिखे अभाव ग्रस्त। जकडडडड की कुण्ठा से बहुत त्रस्त॥ अपने उदार सम्वेदन से उसके दुःख-दर्द मिटाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

जो हृदय बन गया हो मरुथल। चाहिए जिसे हो जल-शीतल॥ अपनी करुणा की गंगोत्री, उस हृदय हेतु सरसाता चल। रे! जीवन-तत्व लुटाता चल॥

-माया वर्मा

*समाप्त*


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