Quotation

March 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जिस तरह हम यज्ञ में आहुति देते समय कहते हैं कि “इन्द्राय इदं न मम” यह मेरा नहीं है, उसी तरह आज हम जो कुछ उत्पादन करते हैं; चाहे वह खेती में हो, चाहे फैक्टरी में, उसके बारे में हमें कहना चाहिए कि “समाजाय इदं, राष्ट्राय इदं न मम” यह सब मेरे लिए नहीं हैं, समाज के लिए है, राष्ट्र के लिए है, अपने पास जो भी कुछ है, वह सब समाज को अर्पण करना चाहिए। फिर समाज की ओर से अपनी आवश्यकतानुसार जो मिलेगा वह अमृत होगा।

−विनोबा भावे

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles