ज्ञान किसका सार्थक- आज का या पूर्वजों का

March 1978

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“पक्षी मानव” (ह्यूमन बर्ल्ड आइसलैण्ड) के नाम से विख्यात ईस्टर द्वीप आज भी मानवीय प्रगति और सभ्यता को प्रश्न वाचक चिह्न से घेरे हुए यह पूछता है कि आत्मतत्व को भुलाकर बाह्य जगत के ज्ञान में प्रतिबद्ध आज का मनुष्य सराहनीय है अथवा अतीत के पूर्वज जिन्होंने भौतिकी की उच्चतम इकाइयों का संस्पर्श तो किया किन्तु मानव जीवन की आध्यात्मिक गरिमा को ठुकराया नहीं, उसे गले से लगाये रखा। तभी वह युग स्वर्गीय परिस्थितियों का धरती में ही देवत्व का, स्वर्णिम युग बना रहा।

चिली से 2250 मील दूर इस द्वीप में 18वीं शताब्दी में जब पहले पहल योरोपियन नाविक पहुँचे तो उन्होंने वहाँ जो देखा तो वे भय मिश्रित आश्चर्य से अविभूति हो उठे। रक्षक पहरुओं की तरह समूचे द्वीप में गोलाकार खड़ी पत्थर की विशाल मूर्तियाँ आज भी दूर से यंत्र मानव सी प्रतीत होती हैं दिन भर उनकी छाया के बनते बिगड़ते दृश्य मन में कौतूहल पैदा करते हैं आखिर इतना विशाल परिश्रम उस समय किस तरह और किस लिये किया गया।

ज्वालामुखी चट्टानों को काट कर बनाई गई यह आकृतियाँ 33 से 66 फीट तक ऊँची और 50 टन वजन तक की भारी हैं। अनुमान है इन्हें बनाने में 10000 टन वजन तक के पत्थर के भारी टुकड़े काटे गये होंगे। इनके हाथ, पाँव, पेट, सिर, आदि इस तरह तराशे गये हैं कि देखने से ऐसा लगता है मानों यह बोलने ही वाली हैं। यह कार्य समर्थ व्यक्तियों द्वारा ही सम्पन्न हो सकता है असमर्थों द्वारा नहीं।

पुरातत्व वेत्ताओं के लिये यह एक दम नया आश्चर्य था और तब से अब तक हजारों विशेषज्ञ इसकी यात्रा कर चुके हैं। सबने अलग−अलग तरह की मान्यतायें बनाई हैं किन्तु अधिकांश का मत है कि छोटी बड़ी आकृतियाँ दिन में सूर्य की रोशनी में बनने वाली छाया में किन्हीं गणितीय सूत्रों के हल और रात में नक्षत्र मंडल की नाप−जोख की वेधशाला का काम करती रही हैं। लकड़ी की पट्टियों में मिले कुछ विचित्र संकेत और आश्चर्य जनक चित्र भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं और वहाँ आदिम निवासियों का चन्द्रमा आदि समीपवर्ती ग्रहों का सूक्ष्मतम ज्ञान भी इसी सत्य का समर्थन करते हैं। आज भी इस द्वीप के निवासी अपनी ही पृथ्वी के बारे में उतना नहीं जानते जब कि वर्षा कब होगी, नक्षत्र मंडल की स्थिति, समुद्री तूफान कब आयेगा यह सब समय से पूर्व ही प्राकृतिक परिवर्तनों के सामान्य अध्ययन से ही घोषित कर देते हैं।

टिहानकों से यह द्वीप यद्यपि 3125 मील दूर है तथापि टिहानकों के पुरातत्व अवशेषों और यहाँ से जो साम्य है वह इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि अपने समय की अति उच्च मय सभ्यता और संस्कृति से इस द्वीप का कोई न कोई सम्बन्ध रहा है और पारस्परिकता में उनका अक्षुण्ण विश्वास रहा है।

मय सभ्यता जो भारतीय संस्कृति का वाम पक्षीय पंथ माना जाता है उच्च सभ्यता थी जो न केवल भवन निर्माण, विमान विद्या अपितु नक्षत्र विद्या में परम निष्णात थी। आज भी इनके कलेण्डर उपलब्ध हैं जो 4000 लाख वर्ष तक पंचांग का काम करते रहेंगे आश्चर्य है कि इतने समय तक सूर्य और चन्द्र ग्रहण सम्बन्धी इन कलेण्डरों की घोषणायें अत्याधुनिक वेधशालाओं के समान ही सटीक उत्तर देती आ रही हैं। फिर यह कहना कि पूर्वज रूढ़िवादी या अन्ध−विश्वासी थे अपनी ही संकीर्णता और संकुचित मनोवृत्ति का परिचायक हैं।

मय−कलेण्डर चन्द्रमा सूर्य और शुक्र को 37960 वर्षों में समान युति में आना बताते हैं−

सूर्य−8x13x5x73=104x5x73=37960

शुक्र−5x13x8x73=65x8x73=37960

इन युतियों पर विश्व सत्ता के प्राकट्य पर मय सभ्यता का भारतीय संस्कृति के समान ही विश्वास रहा है। उसे कुछ क्षणों के लिए श्रद्धाजन्य विषय मान लें तो भी उनकी अद्भुत गणितीय क्षमताओं पर तो कोई भी अविश्वास नहीं कर सकता।

मय अपने इन कलेण्डरों से स्थानों की उपयोगिता और वहाँ पड़ने वाले विशेष नक्षत्रीय विकिरण का पता लगाकर आँकते थे और वहीं अपनी वेधशालाएँ, शहर और दुर्ग बनाते थे। कोपन पैलेम्बी, चींचा आदि इन्हीं गवेषणाओं के आधार पर बनाये गये थे। सेक्सेह्यूमान किला इन्काओं का था पर वह भी “मायन” कलेण्डरों के अनुसार ही बना था जो विभिन्न क्षेत्रों में उसे समय के पारस्परिक सहयोग और घनिष्ठता पर प्रकाश डालता है। किसी कारण वश वे समुद्र के किनारे बसना पसंद नहीं करते थे पर उन्हें समुद्री यातायात की पूरी जानकारी रहती थी। नक्षत्र विद्या से इनकी न केवल स्थापत्य कला अपितु सम्पूर्ण जीवन प्रभावित था इसी से पता चलता है कि उनका ज्ञान ससीम नहीं विराट था उनका विज्ञान भी आध्यात्मिक विकास की एक आवश्यक धारा के रूप में था। आज की तरह भौतिक साधनों के उपभोग के लिये नहीं। यही कारण था कि तब लोग अधिक सुखी और प्रसन्न थे जब कि आज साधनों के भण्डार भरे हैं किन्तु मानवीय शान्ति और सुरक्षा को स्थिरता उपलब्ध नहीं हैं।

मय−सभ्यता के जो खंडहर उपलब्ध होते हैं उनसे पता चलता है कि उनके शहर अत्यधिक किस्म के होते थे जिनमें जल−मल निष्कासन तथा स्टेडियम जैसे सार्वजनिक स्थान भी होते थे इस भौतिक प्रगति में भी आध्यात्मिक सिद्धान्तों का परिपालन और उनकी शोध में निरन्तर लगे रहना उनकी बुद्धिमत्ता का परिचायक है। एक ओर आज का युग है जो मनुष्य जीवन को मात्र रासायनिक संवेग की संज्ञा देकर कभी न बुझने वाले जीवन तत्व के विकास की उपेक्षा करता है अध्यात्मवाद का और चाहे कोई दुष्परिणाम हो न हो पर सामाजिक जीवन में अत्यधिक भोगवाद ने व्यक्ति को इतना स्वार्थी बना दिया है कि वह अपने सुख के लिये हर किसी का शोषण और उत्पीड़न करने लगता है। परस्पर अविश्वास, अमैत्री उसी के फल स्वरूप हैं और हर समाज और समुदाय का परस्पर द्वेष, कटुता और संघर्ष उसी का प्रतिफल है।

इटली में ब्रेसिया की गुफाओं में दीवालों पर ऐसी आकृतियाँ अंकित हैं जो नक्षत्रों में अवतरण की विशेष पोशाक पहने हैं उनके हेलमेटों में सींग से निकले हैं जो स्पष्टतः एरियल यंत्र प्रतीत होते हैं। वैली लोनिया में ऐसी पट्टियाँ मिलती हैं जिनमें भूतकाल के चन्द्रग्रहणों की तिथियाँ अंकित हैं और वे आज भी सच निकलती आ रही हैं चीचने में एक ऐसी वेधशाला खोजी गई है जिसकी सीढ़ियाँ छत व गुम्बद सभी नक्षत्रीय गवेषणाओं तथा गणितीय समीकरण निकालने में सहायक थे यह छेद उन तारों की ओर नहीं हैं जो अत्यधिक चमकीले हैं। उपलब्ध शिलालेखों में यूरेनस नेपच्यून तक की सूक्ष्म जानकारियाँ अंकित हैं पैलन्क्वीन में नक्षत्र यान चलाती हुई मानव आकृतियाँ उपलब्ध हैं यह सारी उपलब्धियाँ अत्यधिक बुद्धि कौशल की परिचायक हैं जिन लोगों की विज्ञान में इतनी पहुँच रही है उनके आत्म विज्ञान को रूढ़िवाद कहना अपने आप को धोखा देना है तब लोगों की आध्यात्मिक क्षमताएं आज से हजार गुना बढ़ चढ़कर थीं। स्पष्ट है उनके ज्ञानार्जन का उद्देश्य आत्म−तत्व की खोज को बढ़ावा देना मात्र था यह कितने दर्द की बात है कि आज ज्ञान का उद्देश्य आध्यात्मिकता को कुचलना हो गया है इसी से मनुष्य क्लान्त, क्लीव और संतप्त है। अपने इस दृष्टिकोण में परिवर्तन लाये बिना आज का मनुष्य सुखी हो सकता है; इसे मात्र दुराशा ही कहा जा सकता है।


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