आदर्शवादी साहसिकता का उपयुक्त अवसर

March 1978

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मनुष्य अनुचित सोचते और अकर्म करते हैं तो सन्तुलन बिगड़ता है। व्यक्ति दुःख पाता है और समाज संकटग्रस्त होता है। स्थिति उसी प्रकार चलती रहे तो महाविनाश के गर्त में गिरना पड़ेगा। मानवी प्रयास जब अवांछनीयता को रोकने में उपेक्षा बरतते हैं अथवा अपने को असमर्थ समझते हैं तो महाकाल को स्थिति अपने हाथ में लेनी पड़ती है। सृष्टा को अपना यह विश्व उद्यान दुष्प्रवृत्तियों के कुचक्र में फँसकर नष्ट हो जाने देना स्वीकार नहीं। वे भूलोक की अपनी अनुपम कलाकृति को विनाश के गर्त में गिरने देता नहीं चाहते। अस्तु समय रहते सन्तुलन बनाने वाली शक्तियों का अवतरण होता है। वे जागृत आत्माओं के अन्तःकरणों में अपनी प्रकाश किरणें फेंकती हैं। उन्हें कठपुतली जैसा माध्यम बनाकर परिवर्तन का तूफान उत्पन्न करती है।

स्थिति की विषमता को सम्भालने के लिए भगवान इसी रूप में अवतार लेते हैं। युगान्तर चेतना के रूप में उसका अवतरण होता है। उसे कार्यान्वित करने में जो अग्रिम पंक्ति में खड़े होते हैं वे श्रेय पाते हैं। किन्तु उसमें योगदान असंख्यों का होता है। राम के रीछ बानर−कृष्ण के ग्वाल−बाल, बुद्ध के परिव्राजक−गान्धी के सत्याग्रही अवतार भूमिका के उपकरण कहे जा सकते हैं। श्रेय किसको मिला यह संयोग की बात है। परिवर्तन विचारधारा के तूफानी प्रवाह के रूप में आता है और असंख्यों को अपने प्रभाव से उद्वेलित करता है। जागृत आत्माओं को ऐसे अवसरों पर विशेष भूमिका निभानी पड़ती है। जो युग धर्म को समझते हैं−युग देवता का आह्वान सुनते हैं वे धन्य बनते हैं। उन दिनों जो असमंजस में पड़े रहते हैं उन्हें समय को न पहचान सकने की सदा पश्चात्ताप की आत्म प्रताड़ना ही सहन करनी पड़ती हैं।

अरुणोदय का पूर्वाभास पाकर मुर्गा पहले बाँग लगाता है, इस जागरुकता ने उसे प्रख्यात कर दिया। देर से तो सभी पक्षी जगते हैं, पर वे वैसी ख्याति नहीं पाते। उगते सूर्य को नमस्कार किया जाता है पीछे तो वह दिन भर ही बना सकता है। शुक्ल पक्ष में सर्वप्रथम निकलने वाले दौज के चन्द्रमा का दर्शन करने के लिए सब आतुर रहते हैं। पीछे तो वह महीने भर घटता बढ़ता बना ही रहता है। जन्म का पहला दिन स्मरणीय रहता है ऐसे तो जिन्दगी में हजारों दिन आते और चले जाते हैं। पर्वत चोटियों के बारे में प्रथम शोध करने वालों के नाम पर एवरेस्ट आदि शिखरों के नाम रखे गये हैं। नेपच्यून, प्लूटो आदि के नाम भी उनके शोधकर्त्ताओं के नाम पर रखे गये हैं। पीछे तो उनके शोध करने वाले अनेक पैदा होते रहे हैं। फोटो में साफ तस्वीर उनकी आती है जो ग्रुप की अगली पंक्ति में खड़े होते हैं। साहस उन्हीं का सराहनीय है जो दूसरों की प्रतीक्षा न करके अपनी साहसिकता का परिचय देते हैं।

युग परिवर्तन अगले दिनों की सुनिश्चित सच्चाई है। ईश्वरीय प्रयोजन पूरे होने हैं। गीता में भगवान अर्जुन को यही समझाते हैं कि यह कौरव दल तो मरा रखा है। तेरे पीछे हटने पर भी वह दूसरी प्रकार से मरेगा। सुनिश्चित सफलता के श्रेय को उपलब्ध करना ही बुद्धिमत्ता है। युग देवता की पुकार सुनने, माँग पूरी करने और प्रेरणा का अनुसरण करने के लिए तो देर सवेर में अभी को हाथ उठाने और पैर बढ़ाने पड़ेंगे। सराहना उनकी है जो समय रहते चेतते हैं। स्वतन्त्रता संग्राम में थोड़े−थोड़े दिन के लिए जेल गये लोग शासन सम्भालते और पेन्शन पाते देखे जा सकते हैं। जो उस समय चूक गये उनके लिए वह संयोग कभी भी आ नहीं सका। जागृत आत्माओं को युग देवता ने पुकारा है और कहा है वे अग्रिम पंक्ति में खड़े हों। हनुमान, अंगद की−भीम, अर्जुन की भूमिका सम्पन्न करें। जो स्वीकार करेंगे वे न भौतिक दृष्टि से घाटे में रहेंगे न आत्मिक दृष्टि से। जो असमंजस में पड़े रहेंगे उन्हें पश्चात्ताप ही पल्ले बाँध कर प्रयास करना पड़ेगा।

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