महान विभूतियाँ अपने जीवनकाल में कदाचित ही यश, सफलता, सहयोग पाती हैं। उस समय तो लोग उनका उपहास, तिरस्कार करते रहते हैं, पर जब वे चले जाते हैं तो पछताते और पूजते हैं। यही है इस दुनिया का विडंबना भरा रिवाज।
संसार का सबसे ख्यातिप्राप्त चित्र, ला मैडोला डेला ऐडिया है। वह क्लोरेंस के पिट्टी राजमहल में टँगा है। इटली सरकार ने इसे 1939 के न्यूयार्क के विश्व चित्रमेले में भेजा था। वहाँ उसे विश्व की सर्वोत्तम कृति के रूप में सम्मान मिला। इतना सुंदर भावाभिव्यक्ति कोई अन्य चित्रकार कर नहीं सका, ऐसा कहा जाता है। इस का मूल्य दस लाख डालर से भी अधिक आँका गया है।
इटली का महान चित्रकार राफेल एक दिन घूमता हुआ किसी देहात में जा पहुँचा। वहाँ उसने एक सुंदर दृश्य देखा— एक माँ अपने छोटे बच्चे को गोद में लिए भावपूर्वक महीन आवाज में कुछ गा रही थी, बगल में ही उसका बड़ा लड़का खड़ा था, जो छोटे भाई की तरह ही माँ की स्नेह-व्यंजना पाने के लिए आतुर होकर खिन्न मुद्रा में खड़ा था। इन भावाभिव्यक्तियों की गहरी छाप कलाकार के मन पर पड़ी और उसने उस चित्र को तूलिकाबद्ध करने का निश्चय किया।
राफेल घर आए और चित्र बनाने की तैयारी करने लगे। पर दुर्भाग्यवश उनकी आर्थिक तंगी कुछ भी करने नहीं दे रही थी। तस्वीर बनाने का कपड़ा उसे खड़ा करने का लकड़ी का ढांचा आदि वे कुछ भी न जुटा सके। उन्होंने कूड़े के ढेर में से शराब का एक खाली पीपा ढूँढ़ निकाला और उसी को सीधा करके चित्र बनाने के काम में लिया। चित्र उनने बड़े मनोयोग से बनाया। पर पेट की आग अब कुछ भी नहीं करने दे रही थी, सो वे एक भटियारे के पास गए और 25 सेंट की रोटियाँ खरीदने के बदले में उसी को उन्होंने वह चित्र बेच दिया।