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Akhand Jyoti
Year 1972
Version 2
सद्वाक्य
सद्वाक्य
September 1972
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ईश्वरप्राप्ति के लिए, मुझे अपनी अनासक्ति ही अच्छी लगती है, उसमें सब कुछ आ जाता है।
—गाँधी
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Page Titles
अंतःकरण में ईश्वर का दर्शन
समुद्री लहरों की तरह हमारा जीवन उछले, गरजे और आगे बढ़े
अत्यधिक तेज गति से खाली झोली ही मिलती है (कहानी)
मृदुलता और कठोरता से ओत-प्रोत मानवी काया
स्वामी विवेकानंद (कहानी)
शांति बाहर नहीं— भीतर खोजनी पड़ेगी
पृथ्वी का ओर-छोर बनाम जीवन का आदि अंत
आत्मविश्वास से सब कुछ संभव (कहानी)
दर्शन पर्याप्त नहीं, भगवान को साथी और सेवक बनाएँ।
सद्वाक्य
चुंबक और मानवीय प्रकृति का सादृश्य
विल्मा गोल्डीन रुडॉल्फ के संकल्प और अभ्यास (कहानी)
सुख भगवान की दया, दुख उनकी कृपा
मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व रहता है
आलोचना से डरें नहीं— उसके लिए तैयार रहें
हारमोन स्रावों का उद्गम अंतःचेतना से
अभिमान न करे (कहानी)
शरीरगत विद्युतशक्ति को सुरक्षित रखें— बढ़ाएँ
सद्वाक्य
हम ईश्वर के होकर रहें— उसी के लिए जिएँ।
सद्वाक्य
मस्तिष्कीय स्तर मोड़ा और मरोड़ा जा सकता है।
महान विभूतियाँ (कहानी)
प्रतिविश्व— प्रतिपदार्थ— शक्ति का अजस्र स्रोत
तीन महीने के प्रशिक्षण का एक संक्षिप्त सत्र (कहानी)
परमेश्वर का निराकार और साकार स्वरूप
साँस मत लो— "इस हवा में जहर है"
सद्वाक्य
दिव्य अग्नि का अभिवर्ध्दन, उन्नयन
बुद्ध की निंदा करो (कहानी)
परमार्थ के लिए अपने को खतरे में डालने वाले
हम सोमरस पिएँ— अजर-अमर बनें
संसार में त्रिविधि कष्ट और उनका निवारण
साहसी पक्षी— जिन्हें पुरुषार्थ के बिना चैन नहीं
अस्वस्थता की टहनी नहीं— जड़ उखाड़ें
सभ्यता और समृद्धि (कहानी)
जीवन तत्त्व की गंगोत्रीम— प्राणशक्ति
सद्वाक्य
अंतःकरण को पवित्र बनाने की प्रभु-प्रार्थना
अपनों से अपनी बात— आत्मबोध, आत्मनिर्माण और आत्मविकास की राह पर चल पड़ें
शहीदी दिवस (कहानी)
जय बोलो श्रीराम की (कविता)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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