अंतःकरण को पवित्र बनाने की प्रभु-प्रार्थना

September 1972

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अथर्ववेदीय पिप्पलाद संहिता के पवमान-सूत्र में भगवान से पवित्रता-प्रदान करने की प्रार्थना की गई। वस्तुतः यह सबसे महत्त्वपूर्ण याचना है।

संसार विपत्तियों, शोक-संतापों और कष्ट-क्लेशों का कारण एक ही है, अपना अंतःकरण कषाय-कल्मषों से कलुषित होना। प्रकारंतर से यह समस्त अभावों और अवरोधों की जड़ है। जड़ कट जाने पर पत्र-पल्लव तो अनायास ही नष्ट हो जाते हैं।

भगवान से साँसारिक कष्टों की निवृत्ति एवं संपत्ति अभिवर्ध्दन के लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं। यह तो अपने पौरुष और कौशल पर निर्भर होने से सर्वथा अपने ही हाथ में है। प्रभु का अनुग्रह तो आंतरिक पवित्रता के रूप में ही उपलब्ध होता है। पवमान-सूत्र का पाठ और मनन-चिंतन करने से इसी की प्रेरणा हमें प्राप्त होती है।

सहस्राक्षं   शतधारमृषिभिःपावनं  कृतम्।

तेना  सहस्रधारेण  वमानः पुनातु माम् ॥

सहस्रों नेत्रों वाला, सहस्रों धाराओं वाला, ऋषियों को पवित्र करने वाला, पवमान सहस्रधारा वाले सोम से मुझे पवित्र करे।

येन  पूतमन्तरिक्षं यस्मिन्वायुरधिश्रितः ।

तेना   सहस्रधारेण  वमानःपुनातु  माम् ॥

जिसने अंतरिक्ष को पवित्र किया, जिसमें वायु का निवास है। वह पवमान सहस्रधारा वाले सोम से मुझे पवित्र करे।

येन पूते द्यावापृथिवी आपः पूता अथो स्वः।

तेना सहस्रधारेण पवमानः  पुनातु   माम् ॥

जिससे यह द्युलोक, पृथ्वी, जल और स्वर्ग पवित्र किए गए, उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे पवित्र करे।

येन पूते अहोरात्रे दिशः पूता उत येन प्रदिशः ।

तेना   सहस्रधारेण  पवमानः   नातु    माम् ॥

दिन-रात, दिशा-प्रदिशा, जिससे पवित्र हुई उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे पवित्र करे।

येन पूतौ सूर्याचन्द्रमसौ नक्षत्राणि भूतकृतः सहयेनपूताः।

तेना    सहस्रधारेण     पवमानः     पुनातु         माम् ॥

सूर्य-चंद्र, नक्षत्र और पंचतत्त्व, जिससे पवित्र हुए उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे करे ।

येन पूता वेदिरग्नयः परिधयः सह येन पूताः ।

तेना  सहस्रधारेण  पवमानः  पुनातु   माम् ॥

जिससे वेदी, अग्नि और मेखलाएं पवित्र की गई, उस सहस्रधारा वाले सोम से मुझे पवित्र करे ।

येन पूता ऋचः सामानि यजुर्ब्राह्मणं सह येन पूतम्।

तेना    सहस्रधारेण    पवमानः    पुनातु      माम् ॥

जिससे ऋचाएँ, साम, यजु और ब्राह्मण पवित्र हुए उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे पवित्र करे।

येनपूतावनस्पतयोवानस्पत्या, ओषधयोवीरुधःसहयेनपूता।

तेना    सहस्रधारेण      पवमानः      पुनातु         माम्

जिससे वंस्पत्तियाँ, पुष्प, फल ,वृक्ष, औषधियाँ, वल्लरियाँ, पवित्र हुई , उस सहस्त्रधारा वाले सोम से पवमान मुझ पवित्र करे ।


येन पूता नद्यः सिन्धवः समुद्राः सह येन पूताः ।

तेना      हस्रधारेण   पवमानः   पुनातु    माम् ॥

जिससे नदी-नाले, समुद्र पवित्र हुए, उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे पवित्र करे ।

येन पूतः स्तनयित्यनुरपामुत्सः प्रजापतिः।

सहस्रधारेण      पवमानः   पुनातु    माम् ॥

जिससे विद्युत और जल से भरे मेघ पवित्र हुए, उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे पवित्र करे।

येन   पूतमिंद  सर्वं  यद्भूतं  यञ्चभव्यम्।

तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥

जिस पर भूत और भविष्य की समस्त पवित्रता निर्भर है, उस सहस्रधारा वाले सोम से पवमान मुझे पवित्र करे।

अपनो से अपनी बात —


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