एक राजा को ऐसा अभिमान हुआ कि स्वयं को ही भगवान घोषित कर दिया। चाटुकार राज्य कर्मचारी भी उसकी हाँ में, हाँ मिलाते। जो न मिलाता राजा उसे व्यर्थ ही दंड देता और राज्य से निकाल देता।
एक दिन एक साधु दरबार में उपस्थित हुए और राजा से पूछा— "महाराज बताइए आपके राज्य में कितने कौवे, कितने कबूतर और दूसरे पक्षी हैं?" राजा ने कहा— "यह तो मुझे नहीं मालूम? तो फिर उन सबको भोजन कैसे देते होंगे। भगवान तो, सबको खिलाता, सबकी रक्षा करता है। राजा के ज्ञान-चक्षु खुल गए उस दिन के बाद उसने अभिमान करना छोड़ दिया ।"