साहसी पक्षी— जिन्हें पुरुषार्थ के बिना चैन नहीं

September 1972

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सुगम-सुविधाजनक, आरामतलबी की जिंदगी आज के आदमी का लक्ष्य बनी हुई है। वह अधिक से अधिक शौक-मौज से भरे दिन काटना चाहता है और विलासिता में निमग्न रहने के साधन ढूँढ़ता है। तथाकथित बड़े लोगों की आजकल यही प्रवृत्ति है। वे अधिक धन और सुविधा-सामग्री इसी प्रयोजन के लिए जमा करते हैं।

छोटा कहा जाने वाले वर्ग धन की कमी की वजह से नहीं, उत्साह और उमंगों की दरिद्रता के कारण छोटा है और दिन-दिन और भी अधिक गिरता जाता है। उसे आलस्य और प्रमाद खाए जाता है। जब भूख विवश करती है, तो कुछ करने को खड़ा होता है और उतने ही हाथ-पैर हिलाता है, जितने के बिना कि पेट का गड्ढा नहीं भरता। इसके बाद उसे भी आलस्य, प्रमाद, व्यसन आदि झगड़े, गपशप और आवारागर्दी की सूझती है। अपने आपके संबंध में बेखबर यह लोग कितना गंदा-गलीज जीवनक्रम अपनाए रहते हैं, यह देखकर दया आती है, आवारागर्दी के समय को यदि वे शरीर, वस्त्र, मकान और जो कुछ उनके पास है। उसे स्वच्छ बनाने में ही लगा लिया करें तो इतने मलीन तो न दिखें पिछड़ेपन में निर्धनता और अशिक्षा भी कारण हो सकती है पर सबसे बड़ा कारण है — "मानसिक छोटापन। उसी व्यापक छूत की बीमारी को हम इस देश के पिछड़ेपन का मूलभूत कारण भी कह सकते हैं।"

आरामतलबी या आलसीपन यह दोनों ही सजीव चेतन प्राणी की अंतरात्मा की मूल प्रकृति के विपरीत हैं। यदि अंतःकरण को दुर्बुद्धि ने मूर्छित न कर दिया हो तो उससे सदा साहसिकता का परिचय देने की— "शौर्य प्रवृत्ति उमंगती रहती दिखाई देगी। बहादुरी और वीरता के प्रतिफल ही सच्चा आनंद और संतोष दे सकते हैं, इसे छोटे पक्षी भी जानते हैं।"

चिड़ियों में बहुत-सी ऐसी होती हैं, जो बदलती हुई ऋतुओं का आनंद लेने के लिए लंबी यात्राएँ करती हैं। इसमें उन्हें काफी श्रम करना पड़ता है और भारी जोखिम उठानी पड़ती है तथा मनोयोग का प्रयोग करना पड़ता है, पर वे बेकार झंझट में क्यों पड़ें, चैन के दिन क्यों न गुजारें की भाषा में नहीं सोचती; वरन इस प्रकार साहसिकता का परिचय देने में आंतरिक प्रसन्नता एवं संतोष का अनुभव करती हैं। इसके लिए उनमें भीतर से ऐसी उमंग उठती है, जिसे पूरा किए बिना रहा ही नहीं जाता। पेट कहीं भी भरा जा सकता है और दिन कहीं भी काटे जा सकते हैं, यह मरी हुई जिंदगी है जिसे मनुष्य भले ही पसंद करे, पर पशु-पक्षियों से लेकर कीट-पतंगों तक कोई भी उसे पसंद नहीं करता। कुछ चिड़ियाँ तो ऐसी हैं, जो अपनी साहसिक यात्राओं द्वारा संभवतः मनुष्य को भी उत्साही, परिश्रमी, साहसी और महत्त्वाकांक्षी होने की प्रेरणा करती हैं।

सितंबर के प्रथम सप्ताह में भारत में ऐसे अनेक रंग-बिरंगे पक्षी दिखाई पड़ते हैं, जो गर्मी और बरसात में नहीं थे। यह पक्षी जर्मनी, साइबेरिया, चीन, तिब्बत, आदि सुदूर देशों से हजारों मील की लंबी यात्रा करके आते हैं। तिधारी, चैती, हंसक, पैतरा, सुरखाव, लालसर आदि प्रमुख हैं। इनमें पैर के अँगूठे के बराबर ‘स्वेट पेनिकल’ जैसे छोटे और 25 पौंड भारी आदम कद सारस जैसे बड़े पक्षी भी होते हैं। यह लंबी यात्रा सप्ताहों तथा महीनों की होती है। आहार की सुविधा, ऋतु-प्रभाव से बचाव और सैर-सपाटे का आनंद यह इस लंबी यात्रा का उद्देश्य होता है। आश्चर्य यह है कि यह अपनी यात्रा अवधि पूरी करके नियत समय पर ही अपने स्थानों को लौट जाते हैं और अपने पुराने पेड़ों और पुराने घोंसलों में ही जाकर फिर बस जाते हैं। भारत में भी वे मारे-मारे नहीं फिरते; वरन यहाँ भी वे अपने नियत स्थान बनाते हैं और जब तक जीवित रहते हैं प्रायः इन दोनों क्षेत्रों में अपने नियत स्थानों पर ही निवास करते हैं।

इन पक्षियों की लंबी यात्राएँ, ऊँची उड़ानें आश्चर्यजनक हैं। बागटेल 2000 मील की लंबी यात्रा करके बंबई के निकट एक मैदान में उतरते हैं और फिर विभिन्न स्थानों के लिए बिखर जाते हैं। गोल्डन फ्लावर पक्षी अमेरिका से चलते हैं। पतझड़ में भारत में विश्राम करते हैं, फिर थकान मिटाकर अटलांटिक और दक्षिण महासागर पार करते हुए दक्षिण अमेरिका जा पहुँचते हैं। आते समय वे समुद्र के ऊपर से उड़ते हैं और जाते समय जमीन के रास्ते लौटते हैं। अलास्का में उनके घोंसले होते हैं और वहीं अंडे देते हैं। हर वर्ष प्रायः वह दो ढाई हजार मील की यात्रा करते हैं। पृथ्वी की परिक्रमा तीन हजार मील की है। इस प्रकार वे लगभग पृथ्वी की एक परिक्रमा हर वर्ष पूरी करते हैं। आर्कटिक टिटहरी इन सब घुमक्कड़ पक्षियों से आगे है। उतरी ध्रुव के समीप उसका घोंसला होता है। पतझड़ में वह दक्षिणी ध्रुव जा पहुँचती है। बसंत में फिर वापिस उत्तरी ध्रुव लौट जाती है। जर्मनी के बगुले 4 महीने में करीब 4000 मील का सफर पूरा करते हैं। रूसी बतखें भी 5000 मील की लंबी यात्राएँ करती हैं। यह पक्षी औसतन 200 मील की यात्रा हर रोज करते हैं। टर्नस्टान इन सबसे अधिक उड़ती है, उसकी दैनिक उड़ान 500 मील के करीब तक की होती है साथ ही उसका 17 हजार फीट की ऊँचाई पर उड़ना और भी अधिक आश्चर्यजनक है। हाँ समुद्र पार करते समय उड़ने की ऊँचाई तीन हजार फीट से अधिक नहीं होती।

इन्हें इतनी खतरनाक और कष्टसाध्य उड़ानें उड़ने की उंमग क्यों उठती है। क्या उनके लिए यह उड़ान अनिवार्य है? क्या वे अपने क्षेत्र में गुजारा नहीं कर सकते या वहीं कही थोड़ा उड़कर काम नहीं चला सकते? आखिर ऐसा बड़ा कारण क्या है, जिसके कारण जान-जोखिम में डालने वाला ऐसा कदम उन्हें उठाना पड़ता है।

पक्षी विज्ञान के विज्ञानियों ने यह पाया है कि वाह्यदृष्टि से उनके सामने कोई ऐसी बड़ी कठिनाई नहीं होती, जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा जोखिम उठाने के लिए विवश होना पड़े। आहार की, ऋतु-प्रभाव की घट-बढ़ होती रह सकती है, पर दूसरे पक्षी भी तो उन्हीं परिस्थितियों में किसी प्रकार निर्वाह करते हैं। फिर इन सैलानी चिड़ियों को ही ऐसी विचित्र उमंग क्यों उठती है। इस प्रश्न का उत्तर उनकी वृक्क ग्रंथियों में पाए जाने वाले विशेष हारमोन रसों में मिलता है। जिस प्रकार कुछ बढ़े हुए हारमोन अपने समय पर काम-वासना के लिए बेचैनी उत्पन्न करते हैं, लगभग वैसी ही बेचैनी इस प्रकार की लंबी उड़ान भरने के लिए इन पक्षियों को विवश करती है। वे अपने भीतर एक अद्भुत उमंग अनुभव करते हैं और वह इतनी प्रबल होती है कि उसे पूरा किए बिना उनसे रहा ही नहीं जाता। यह उड़न हारमोन न केवल प्रेरणा देते हैं; वरन उसके लिए उनके शरीरों में आवश्यक साधन-सामग्री भी जुटाते हैं। पंखों में अतिरिक्त शक्ति, खुराक का समुचित- साधन न जुटा सकने की क्षतिपूर्ति करने के लिए बढ़ी हुई चर्बी, साथ उड़ने की प्रवृत्ति, समय का ज्ञान, नियत स्थानों की पहचान, सफर का सही मार्ग जैसी कितनी ही एक से एक अद्भुत बाते हैं, जो इस लंबी उड़ान और वापसी के साथ जुड़ी हुई हैं। उन उड़न हारमोनों को पक्षी के शरीर, मन और अंतर्मन में इस प्रकार के समस्त साधन जुटाने पड़ते हैं, जिससे उनकी यात्रा प्रवृत्ति तथा प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कार्यांवित होते रहने का अवसर मिलता रहे।

प्रकृति नहीं चाहती कि कोई प्राणी अपनी प्रतिभा को आलसी और विलासी बनाकर नष्ट करे। प्रकृति इन यात्रा प्रेमी पक्षियों को यही प्रेरणा देती है कि वे विभिन्न स्थानों के सुंदरदृश्य देखें, और वहाँ के ऋतु-प्रभाव एवं आहार-बिहार के हर्षोल्लास का अनुभव करें। अपनी क्षमता और योग्यता को परिपुष्ट करें।

मनुष्य में आरामतलबी की प्रवृत्ति इतनी घातक है कि वह कुछ महत्त्वपूर्ण काम कर ही नहीं सकता, अपनी प्रगति के द्वार किसी को रोकने हों, तो उसे काम से जी चुराने की आदत डालनी चाहिए और साहसिकता का त्याग कर विलासी बनने की बात सोचनी चाहिए। ऐसे लोगों को मुँह चिढ़ाते हुए,उनकी भर्त्सना करते हुए ही यह उड़नपक्षी विश्व निरीक्षण,विश्व-भ्रमण करते रहते हैं, ऐसा लगता है।


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