एक वीरांगना गुंडों को शराब पिलाती थी और उनसे कहती थी कि बुद्ध की निंदा करो। वीरांगना की प्रेरणा से उन्होंने हफ्तों तक बुद्ध का पीछा किया। डगर-डगर, गाँव-गाँव छेड़ा, पीटा और उन्होंने भद्दी से भद्दी गालियाँ दीं उनके चरित्र पर कीचड़ उछाला। बुद्ध के शिष्य आनंद इस मार-पीट और गाली-गलौज से इतने संत्रस्त हो गए कि उन्होंने बुद्ध से वह प्रदेश छोड़कर अन्यत्र भाग जाने का अनुरोध किया। बुद्ध ने आनंद को सस्नेह कहा— "वत्स! भय तो मन का विकार है।" मन से भागकर तन कहाँ जाएगा? मन के घट को मोद-माँगल्य से इतना भर लो कि कोई विकार उसमें प्रवेश ही न कर सकें। किसी की निंदा या गाली-गलौज का उस पर असर ही न हो।