आत्मविश्वास से सब कुछ संभव (कहानी)

September 1972

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आत्मविश्वास से सब कुछ संभव--

सृष्टिकर्ता ने एक दिन सोचा कि धरती पर जाकर कम-से-कम अपनी सृष्टि को तो देखा जाए। धरती पर पहुँचते ही सबसे पहले उनकी दृष्टि एक किसान की ओर गई। वह कुदाली लिए पहाड़ खोदने में लगा था। सृष्टिकर्त्ता प्रयत्न करने पर भी अपनी हँसी न रोक पाए। उस इतने बड़े कार्य में केवल एक व्यक्ति को लगा देख और भी आश्चर्य हुआ।

वह किसान के पास गए उन्होंने कारण जानना चाहा, तो उसका सीधा उत्तर था। 'महाराज' ! मेरे साथ कैसा अन्याय है? इस पर्वत को अन्यत्र स्थान ही नहीं मिला। बादल आते हैं, इससे टकराकर उस ओर वर्षा कर देते हैं और पर्वत से इस ओर जो मेरे खेत हैं वह सूखे ही रहते हैं।

"क्या तुम इस विशाल पर्वत को हटा सकोगे?"

"क्यों नहीं? मैं इसे हटाकर ही मानूँगा यह मेरा दृढ़ संकल्प है।"

सृष्टिकर्त्ता आगे बढ़ गए उन्होंने अपने सामने पर्वतराज को याचना करते देखा। वह हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहा था— ‘विधाता' ! इस संसार में सिवाय आपके मेरी रक्षा कोई नहीं कर सकता।’

"क्या तुम इतने कायर हो, जो एक किसान के परिश्रम से डर गए"

मेरे भयभीत होने के पीछे कोई कारण है। क्या आपने अभी-अभी नहीं देखा था, कि किसान में कितना आत्मविश्वास है वहाँ से वह मुझे हटाकर ही मानेगा। अगर उसकी इच्छा इस जीवन में पूरी न हुई तो उसके छोड़े हुए काम को उसके पुत्र और पौत्र पूरा करेंगे और मुझे भूमिसात् करके ही चैन लेंगे। आत्मविश्वास असंभव लगने वाले कार्य को भी संभव बना देता है।—  "पर्वतराज ने कहा।"


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles