टेनेसी राज्य में रहने वाली महिला विल्मा गोल्डीन रुडॉल्फ जब चार वर्ष की थी— "स्कारलेट फीवर के कारण उसका दाहिना पैर खराब हो गया। वह बिना सहारे चल भी न सकती थी। पर साहस की धनी उस बालिका ने नियमित टहलने और दौड़ने का क्रम प्रारंभ किया।"
वह पढ़ने के लिए विद्यालय भेजी गई, वहाँ भी उसे दयनीय स्थिति के कारण शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के व्यंग सुनने पड़ते थे। एक अध्यापक ग्रे द्वारा उसे मच्छर की संज्ञा मिली थी, पर उसके धैर्य, संकल्प और साहस ने उसे मच्छर से बिजली बना दिया। सन् 1960 में ओलम्पिक खेलों का आयोजन हुआ, तो रुडॉल्फ ने भी उसमें भाग लिया और एक साथ तीन स्वर्ण पदक प्राप्त किये।
उस लँगड़ी बालिका की इस महान विजय पर दर्शक दंग रह गए। एक खिलाड़ी ने जब उसकी विजय का रहस्य पूछा, तो बड़े गर्व से उत्तर दिया— "मित्र" ! मेरा पैर लँगड़ा हो सकता है, पर मेरे संकल्पों ने और नियमित अभ्यास ने मुझे यह दिन दिखा दिया। वास्तव में नियमित साधना ऐसा अमूल्य खजाना है, जो साधक को मालामाल कर देता है।