सद्वाक्य

September 1972

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गाँधी जी की अतृप्त कामना

“..........कभी-कभी यह आता है कि सब छोड़-छाड़कर एकदम एकांत में जाकर अपना प्रयोग चलाकर देखूँ तो? अपनी शाति और कल्याण साधने के लिए नहीं, किंतु आत्मनिरीक्षण के लिए, आत्मा की आवाज को अधिक स्पष्टता से सुनने के लिए, जगत के ही कल्याण का प्रतिक्षण विचार हो, और इस विचार की सहज-सिद्धिप्राप्त हो सके। तभी मेरा अहिंसा का प्रयोग सफल होगा। पूर्ण अहिंसक मनुष्य गुफा में बैठा हुआ भी; जगत को हिला सकता है।

— हरिजन सेवक


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