सत्य की पहचान (Kahani)

July 1972

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एक दिन किशोरीलाल मश्रूवाला ने गान्धी जी से कहा- मैं आपका अनुयायी नहीं, आपके साथ चलने का प्रयत्न करता हूँ। आपको जिस सत्य की पहचान है उसी को अपने विवेक के आधार पर मैं भी समझने के लिए सचेष्ट हूँ।

उनका आशय यह था कि अनुयायी बनकर पीछे चलने से वे स्वतन्त्र चिन्तन न कर सकेंगे। किसी महापुरुष के पीछे चलने पर हम उसकी पीठ भर देख सकेंगे। मुँह नहीं। इससे उसके चले जाने के बाद दिशा भूल जाने का खतरा रहेगा। साथ चलने से उसके चले जाने के बाद भी अपने को सहाय एवं अपंग अनुभव न करेंगे क्योंकि तब सत्य हमारा अपना सत्य भी बन चुका होगा।


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