सब इन्द्रियों को वश में रखकर, सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ़, अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, अवर्णनीय, अविनाशी स्वरूप की उपासना करते हैं, वे सब प्राणियों के हित में लगे हुए सुख ही पाते हैं।
-भगवान् कृष्ण