Quotation (Kahani)

July 1972

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ईरानी शहंशाह अब्बास शिकार के लिए जंगल में भटक रहे थे। वहाँ उनकी भेंट एक चरवाहे बालक से हो गई। नाम था—मुहम्मद अलीबेग। चरवाहा होते हुए भी उसकी हाजिर जवाबी तथा व्यक्तित्व से शाह बड़े प्रभावित हुये और लौटते समय उसे भी अपने साथ ले आये।

मुहम्मद अलीबेग राज्य का कोषाध्यक्ष बना दिया गया। यद्यपि वह एक निर्धन परिवार का था फिर भी इतनी धन दौलत को देखकर उसका मन तनिक भी विचलित न हुआ। वह अपने को कोषालय के समस्त धन का रक्षक मानता था। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उसके जीवन में सादगी थी।

शाह अब्बास के बाद उनका अल्प वयस्क पौत्र शाह सफी राज सिंहासन पर आसीन हुआ। किसी ने शाह के कान भर दिये कि मुहम्मद अली राज्य के धन का दुरुपयोग करता है। शाह ने उस प्रकरण को जाँच के लिये अपने पास रखा और एक दिन बिना सूचना के उसकी हवेली का निरीक्षण करने जा पहुँचे।

शाह ने हवेली के सब कमरों का निरीक्षण किया। उसके जीवन में बड़ी सादगी थी। जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली वस्तुओं के अतिरिक्त वहाँ कुछ दिखाई ही न दे रहा था। शाह निराश होकर लौटने लगा तो खोजों के संकेत पर शाह की दृष्टि एक बन्द कमरे की ओर गई। उसमें तीन मजबूत ताले लटक रहे थे। अब शाह की शंका को कुछ आधार मिला था। उन्होंने पूछा—’इसमें ऐसा क्या है जिसके लिये इतने मजबूत ताले लगाये हैं।’

‘इसमें हीरे मोतियों से भी मूल्यवान वस्तुएँ है शाह! पर उन पर मेरा अधिकार है।’

‘भले ही आपका अधिकार हो पर शासक उन वस्तुओं को देख तो सकता है?’

तुरन्त ताले खोल दिये गये शाह ने कक्ष के मध्य मेज पर एक लाठी, शीशे की सुराही आदि बर्तन तथा पोशाक और दो मोटे कम्बल देखे। मुहम्मद ने कहा-’जब स्वर्गीय शाह मुझे यहाँ लाये थे उस समय मेरे पास यही वस्तुएँ थीं और आज भी मेरे पास अपनी कहने को यही हैं।’

मुहम्मद की ईमानदारी तथा निःस्वार्थता देख शाह को कुछ कहते न बना। वह मन ही मन पछता रहा था।



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