बिना साधना ईश्वर नहीं मिल सकता।
- रा0कृ0परमहंस
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साधना हमारा दृष्टिकोण परिष्कृत कर देती है और अन्तःकरण में वह प्रकाश उत्पन्न करती है जिससे अपने स्वस्थ, लक्ष्य और कर्तव्य को समझ सकें। साधना वह शक्ति प्रदान करती है जिससे आत्मबल विकसित हो और सन्मार्ग पर चलने के लिए पैरों में अभीष्ट क्षमता रह सके। साधना साहस उपलब्ध कराती है जिसके आधार पर प्रलोभनों और आकर्षणों को दुत्कारते हुए कर्तव्य की चट्टान पर दृढ़ता पूर्वक अग्रसर रहा जा सके और हर विघ्न-बाधा का कष्ट-कठिनाई का धैर्य और सन्तुलन के साथ सामना किया जा सके।
साधना का वरदान ‘महानता’ है। साधना जितनी ही सच्ची और प्रखर होती है उतने ही हम महान बनते चले जाते हैं, तब हमें किसी से कुछ माँगना नहीं पड़ता। ईश्वर से भी नहीं। तब अपने पास देने को बहुत होता है इतना अधिक कि उससे अपने को, अपने संसार को और अपने परमेश्वर को संतुष्ट किया जा सके।
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