स्मृति का धनी कोई भी बन सकता है।

July 1972

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मस्तिष्क विद्या विशारद डॉ0 विल्डर पेनफील्ड ने मस्तिष्क के भीतर एक ऐसी पट्टी का पता लगाया है जो स्मरण शक्ति का मूलभूत आधार है। देखे, सुने और सोचे हुए सभी विचार जो मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं उन्हें उस पट्टी में होकर ही गुजरना पड़ता है अस्तु वे स्मृतियाँ अति सूक्ष्म फिल्मों की तरह अथवा टेपरिकॉर्डर में भरी आवाज की तरह जम जाती हैं और एक कोने में पड़ी रहती हैं। साधारणतया वे स्मृति पटल पर नहीं आतीं पर यदि विशेष प्रयत्न किया जाय तो उन्हें उभारा जा सकता है और कितनी ही पुरानी देखी, सुनी या सोची हुई बात फिर से उसी स्पष्टता के साथ सजग की जा सकती हैं।

स्मरण प्रक्रिया सँभालने वाली यह काले रंग की दो पट्टियाँ हैं जो लम्बाई में लगभग 25 वर्ग इञ्च और मुटाई में एक इञ्च के दसवें भाग के बराबर हैं। मस्तिष्क के भीतर यह चारों ओर लिपटी हुई हैं। कनपटियों से नीचे इन्होंने एक प्रकार से सारे मस्तिष्क का घेरा ही डाला हुआ है। इन्हें ‘टेम्पेरिल कोर टैक्स’ कहते हैं।

डॉक्टर पेनफील्ड ने विद्युत धारा का स्पर्श कराके इस पट्टी के विभिन्न स्थल सजग किए तो वह उन स्थानों में अंकित पुरानी घटनाएं और बातें ज्यों की त्यों स्मरण हो आई। किन्तु जैसे ही वह विद्युत स्पर्श हटाया गया वैसे ही वे बातें पुनः विस्मृत हो गई। ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत करके उपरोक्त वैज्ञानिक ने सिद्ध किया है कि मनुष्य के पास उसके सारे स्मरण यथास्थान सुरक्षित रिकार्डों की तरह संग्रहीत रहते हैं। हाँ वे हर समय स्मरण नहीं आते। प्रयत्नपूर्वक उन्हें उभारा जा सकता है और किसी भी विस्मृत बात को स्मृति पटल पर लाया जा सकता है।

मस्तिष्क 25 वर्ग इञ्च की देखने में एक छोटी सी पुस्तक है, जिसकी 20 कोशिकायें उसके बीस हजार पृष्ठ हैं। इनमें से प्रत्येक पृष्ठ पर ग्रामोफोन रिकार्डों की रेखाओं की तरह अगणित सचित्र स्मृतियाँ और ध्वनियाँ ऐसी अमिट स्याही से लिखी गई हैं कि उन्हें आवश्यकतानुसार कभी पढ़ा, सुना या देखा जा सकता है। आँखें औसतन 5 लाख चित्र हर दिन उतारती हैं। इसके साथ-साथ ध्वनियों, गन्धों, स्पर्शों, स्वादों एवं विचारों का समुद्र हर घड़ी लहराता रहता है। यह सारा तूफान मस्तिष्क में टकराता है, वह उसे समझता और निष्कर्ष निकालता है। इसके बाद भी उसे निरर्थक समझ कर हटा नहीं देता वरन् सँभाल सँजोकर अपने रिकार्ड दफ्तर में जमा कर देता है ताकि आवश्यकतानुसार उन अनुभूतियों को फिर कभी प्रयुक्त किया जा सके।

यों पुरानी बातें हम भूल जाते हैं। इतनी बातें याद कर सकना सम्भव भी नहीं। इसलिए स्मरण-विस्मरण का क्रम साधारणतया चलता रहता है किन्तु साथ ही यह भी होता रहता है कि दैनिक जीवन में काम आने वाले समस्त घटना क्रम की एक अति सूक्ष्म साउण्ड फिल्म बनती रहती है, जिसे आवश्यकतानुसार कभी भी प्रोजेक्ट किया जा सके।

दैनिक अनुभूतियों में कुछ बहुत ही कटु और सामान्यक्रम के विपरीत होती हैं। वे दूसरों के ऊपर क्रोध व्यक्त करती हुई पैर में गहराई तक चुभे हुए काँटे की तरह दर्द करती रहती हैं। किसी ने अपने साथ दुर्व्यवहार किया है तो यह विक्षोभ दूसरे के प्रति घृणा, द्वेष को क्रोध प्रतिरोध के रूप में उभारता है और यदि स्वयं कोई पाप, अपराध, छल या अनैतिक कार्य किया है तो उसकी क्षुब्ध प्रतिक्रिया आत्म-धिक्कार के रूप में अपने ही ऊपर बरसती रहेगी, दोनों ही परिस्थितियों में ज्वालामुखी की तरह रह रह कर फूटते रहने वाला उद्वेग मनःस्थिति को अशान्त किये रहता है और ज्वरग्रस्त शरीर की तरह उद्वेगग्रस्त मस्तिष्क भी दिन-दिन दुर्बल होता जाता है।

स्मृतियों का भण्डार हर मनुष्य के भीतर सुरक्षित रहता है। पर उन्हें ढूँढ़ने और सामने लाने वाले यन्त्र कुण्ठित हो जाते हैं। इसलिए वे अपने ही दफ्तर की फाइल को आप ढूँढ़ निकालने में असमर्थ हो जाते हैं, यही विस्मृति है। यदि ढूँढ़ निकालने वाले पुर्जों को तेज रखा जाय और उस कार्य में दिलचस्पी एवं फुर्ती बनी रहे तो स्मरण शक्ति तीव्र रखी जा सकती है। कई व्यक्तियों में तीव्र स्मरण की विशेषता जन्मजात होती है पर यह हर किसी के लिए सम्भव हो सकता है कि प्रयत्नपूर्वक उसे अधिक तीव्र और सक्षम बना ले। स्मरण शक्ति के धनी कितने ही व्यक्तियों ने ऐसा ही किया है उनमें यह विशेषता जन्मजात नहीं थी। अभ्यास और मनोयोग के समन्वय से उनने उसे बढ़ाया और आश्चर्य की तरह देखे जाने वाले स्मृति के धनियों में अपना नाम लिखाया।

जापान निवासी हनावा होकाइशी सन् 1722 में जन्मा और पूरे 101 वर्ष जीकर 1823 में मरा। वह सात वर्ष की आयु में अन्धा हो गया था। पर इससे क्या उसने बिना नेत्रों के ही दूसरों से सुनकर अपनी ज्ञान वृद्धि आरम्भ कर दी। जो सुना—उसे पूरे मनोयोग के साथ सुना और ध्यान में रखा, फलस्वरूप उसके ज्ञान का कोश इतना बढ़ गया कि उसे एक अद्भुत आश्चर्य माना जाता है। हनावा होकाइशी द्वारा नोट कराये गये ज्ञान भण्डार को जापान में 2820 खण्डों के एक अनुपम विशाल ग्रन्थ के रूप में छापा गया है। यह अब तक का संसार का सबसे बड़ा ग्रन्थ है।

लिथवानियाँ निवासी कैवी ऐलिजा ने दो हजार से अधिक पुस्तकें याद कर रखी थीं, पूछने पर वह उनका कोई भी पृष्ठ बिना पुस्तक देखे सुना देता था। फ्रेंच राजनीतिज्ञ लिआन गैम्बटा भी इसी श्रेणी में आते हैं। उनकी तुलना ऐलिजा से की जाती थी उन्होंने हजारों पृष्ठ विभिन्न पुस्तकों के याद कर रखे थे। ग्रीक विद्वान रिचाड़े पोरसन को भी चलता फिरता विश्वकोश कहा जाता था उनकी स्मरण शक्ति भी अद्भुत थी।

नेलसन पिल्सवरी को शतरंज का जादूगर कहा जाता था। वह एक साथ बीस शतरंजों को बिछाकर बीस खिलाड़ियों के साथ चालें चलता था और सभी पर उसका पूरा ध्यान रहता था। कई बार तो वह शतरंजों के साथ-साथ कई खिलाड़ियों के साथ ताश खेलना भी आरम्भ कर देता था।

प्रसा (जर्मनी) का पुस्तकाध्यक्ष मैथुरिन बेसिरे एक बार जो शब्द सुन लेता था उसे ज्यों का त्यों याद रखता था। एक बार बारह राजदूतों ने उसकी परीक्षा ली। उनकी भाषाओं से मैथुरिन सर्वथा अपरिचित था। एक-एक करके बारहों ने अपनी-अपनी भाषा में बारह वाक्य कहे। उन्हें सुनने के बाद उसने उन शब्दों को क्रमशः ज्यों का त्यों दुहरा दिया। अन्तर तनिक भी नहीं पाया गया।

वरमाँट निवासी आठ वर्षीय बालक जेरा कोलवर्न ने बिना गणित का क्रमबद्ध अध्ययन किये—और बिना कागज कलम की सहायता के दिमागी आधार पर कठिन प्रश्नों के उत्तर देने की जो क्षमता दिखाई उससे बड़े-बड़े गणितज्ञ चकित रह गये। जिन कठिन सवालों को केवल अच्छे गणित ज्ञाता ही काफी समय लगाकर हल कर सकते थे उसने उन्हें बिना हिचके आनन-फानन में कैसे हल कर दिया इसे देखकर सब लोग दंग रह जाते थे। आश्चर्य यह था कि पुस्तकीय आधार पर उसे गणित के सामान्य नियम भी ज्ञात न थे।

गणित शास्त्री जेडिडिया वाक्सटन बहुत समय से एक गणित समस्या में उलझे हुए थे, हल निकल नहीं रहा था, एक दिन उनकी भेंट स्मरण शक्ति के धनी जान मार्टिन डेस से हुई। उसने उनका हल मिनटों में बता दिया। गणित सम्बन्धी उलझनों को सुलझाने के लिए डेस अपने समय में दूर-दूर तक प्रख्यात था।

सर जान फील्डिंग इंग्लैण्ड के जज थे। वे अन्धे थे। पर उनके कान इतने सक्षम थे कि अपने जीवन काल में जिन 3000 अपराधियों से उन्हें वास्ता पड़ा था उन सब की आवाज वे ठीक तरह पहचान सकते थे और उसका नाम बता सकते थे। मुकदमों के मुद्दतों बाद वे लोग कभी उनसे मिलने आते तो नेत्र न रहने पर भी केवल स्मरण शक्ति के आधार पर उसका नाम और मुकदमे का संदर्भ बता देते थे। उनकी यह अद्भुत स्मरण शक्ति चिरकाल तक चर्चा का विषय बनी रही।

फान्सिस्को मैरिया ग्रापाल्डे नामक एक प्रसिद्ध कवि चौदहवीं शताब्दी के अन्त में हुआ है। वह परमा इटली का निवासी था। उसकी विलक्षण प्रतिभा यह थी कि दोनों हाथों से दो कवितायें एक साथ लिखता जाता था। इनमें एक लैटिन भाषा में होती थी और दूसरी पुरातन ग्रीक भाषा में।

कैन्टरवरी के प्रधान पादरी टामस क्रेकर ने तीन महीने में पूरी बाइबिल जबानी याद कर डालने का एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया।

सन् 1724 में जन्मा और 1812 में मरा स्काटलैंड का प्रख्यात डंकन मैक इन्टायर उन दिनों अपनी कविताओं के लिए अपने देश ही नहीं सारे योरोप में प्रसिद्ध था। पर वह न पढ़ना जानता था न लिखना, अपनी सारी प्रतिभा उसने सुन-समझ कर ही विकसित की थी।

ग्रीक पोरसन नामक व्यक्ति को मिल्टन की प्रायः सभी रचनायें याद थीं और वह उन्हें सीधी ही नहीं उलटी करके भी सुना सकता था।

लाक्रोज ने अपनी स्मरण शक्ति का एक अनोखा प्रदर्शन करके दर्शकों को चकित कर दिया। उसने अपरिचित 12 भाषाओं की 12 कवितायें सुनीं और दूसरे ही क्षण उसने उन्हें ज्यों का त्यों दुहरा दिया।

विक्टर ह्यूगो की रचनायें अति प्रिय लगने और उन्हें बार-बार मनोयोगपूर्वक पढ़ते रहने के कारण गमवेटारुथ ने उन्हें ज्यों का त्यों याद कर लिया था और पूछे जाने पर वह पुस्तक के किसी भी पृष्ठ को आरम्भ करके कितने ही पन्ने सुना देता था।

म्युनिख की राष्ट्रीय लाइब्रेरी के सञ्चालक जोसेफ बर्न हार्ड डकन अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न थे। उन्होंने 9 भाषायें सीखी ही नहीं थीं उनमें पारंगत भी बने थे। इसके अतिरिक्त उनकी उस विशेषता को देखकर दंग रह जाना पड़ता था जबकि वे 9 भाषाओं के अपने स्टेनोग्राफरों को एक साथ बिठाकर उन सभी को उन्हीं की भाषा में लेख नोट कराते थे। इतना मस्तिष्कीय सन्तुलन, अथाह ज्ञान और विकसित स्मरण शक्ति का प्रमाण कदाचित ही कहीं कभी देखने को मिलता है।

स्मृति का धनी होना न कोई जादू है और न वरदान। यह किसी कार्य में गहरी अभिरुचि रखने, सावधानी के साथ समझने और मनोयोग पूर्वक उसे मस्तिष्क में सँभाल कर रखने की पद्धति भर है। ढूँढ़ निकालने का अभ्यास भी कुछ अधिक मुश्किल नहीं है। सरकस में काम करने वालों को जितना परिश्रम अपने शरीर और जानवर सधाने में करना पड़ता है उतना ही प्रयत्न यदि मस्तिष्क को सधाने में किया जाय तो कोई मन्द बुद्धि भी कवि कालिदास की तरह बौद्धिक प्रतिभा का धनी हो सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118