बात सन् 1914 की है। एक दिन गुरु देव टैगोर ने सी0 एफ॰ एण्ड्रूज से कहा-’विवाह जीवन की पूर्णता है। प्रगति के मार्ग में पत्नी से पूरी-पूरी सहायता मिलती है और दोनों के सहयोग से विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं। सच्चा जीवन जीने के लिये मनुष्य को विवाह अवश्य करना चाहिए और आपने विवाह न करके बड़ी भारी भूल की है।’
दीनबंधु एण्ड्रूज ने सहज भाव से उत्तर दिया ‘हाँ! आपकी बात बिलकुल सत्य है। मैं भी अनुभव करता हूँ कि विवाह के बिना पवित्र प्रेम तथा पिता और पति के मोहक कर्त्तव्यों से मैं वंचित रहूँगा और मेरे जीवन का विकास भी अवरुद्ध हो जायेगा। पर दाम्पत्य-जीवन के सुख की जब मैं कल्पना करता हूँ तो मेरा मन मुझे एक अन्य दिशा की ओर ले जाना चाहता है।’
वह कहता है ‘तुम अपनी सेवायें राष्ट्रीय आन्दोलन को समर्पित कर चुके हो। जब तक देश स्वतन्त्र नहीं हो जाता तब तक तुम्हारा कुछ नहीं सब कुछ राष्ट्र का ही होगा। तुम मिशन में सर्विस करते हो उसका क्या भरोसा? फिर नौकरी छूट जाने पर घर-गृहस्थी के बोझ को सम्हालने के लिये नौकरी की तलाश करोगे या राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लोगे।’ और मेरे मन में उठने वाले यही विचार दाम्पत्य-जीवन के रेशमी सूत्र में नहीं बँधने देते। दीनबन्धु एण्ड्रूज आजीवन अविवाहित रहकर भारतवासियों को देशभक्ति का सन्देश देते रहे।