श्रीरामकृष्ण परमहंस बीमार थे। उनके गले में व्रण निकला था। चिकित्सा कुछ काम नहीं आ रही थी।
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भक्त जानते थे कि उनके अनुग्रह से कितने ही मृत्यु के मुख में से निकल कर जीवन प्राप्त कर चुके हैं। उनने परमहंस जी से अनुरोध किया कि आप अपने कष्ट की निवृत्ति के लिये भगवान से प्रार्थना करें तो अवश्य अच्छे हो सकते हैं।
परमहंस जी ने उत्तर दिया, मन तो मैं कब का भगवान को दे चुका अब उसे वापिस लेकर उस तुच्छ शरीर के लिए उसे कैसे लगाऊँ ?
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