Quotation - सन्देश

July 1972

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हरिद्वार पधारने वालों से विशेष अनुरोध


हरिद्वार अब पर्यटकों का बहुत बड़ा केन्द्र हो गया है। गर्मियों में प्रतिदिन लाखों ही यात्री यहाँ आते हैं। आने वालों में नित्य हजारों की संख्या युग-निर्माण परिवार के सदस्यों की भी रहती है। उनको यह इच्छा होनी स्वाभाविक है कि शान्ति- कुञ्ज में ठहरा जाय।

पर यहाँ की स्थिति से उस इच्छा पूर्ति का ताल-मेल तनिक भी नहीं खाता। यहाँ धर्मशाला स्तर का ठहरने लायक स्थान तनिक भी नहीं बनाया गया है। यह स्थान हरिद्वार नगर से 7 मील दूर जंगल में है जहाँ भोजन आदि की न तो कोई दुकान है और न वापसी में कोई ताँगा, रिक्शा आदि सवारी मिलती है। भोजन, निवास और वाहन तीनों की दृष्टियों से यात्रियों को यहाँ घोर असुविधा है।

इस स्थिति से परिचित न होने के कारण कारण पर्यटक लोग यहाँ मई, जून में भारी संख्या में आते रहे। उनकी संख्या तीस-तीस चालीस-चालीस तक बनी रही। जहाँ एक ओर स्वजनों के आने की प्रसन्नता हुई वहाँ अपनी सामर्थ्य से बाहर का यह आतिथ्य अत्यन्त कष्टकारक भी रहा। दो के स्थान में बीस ठूँसने पड़े और भोजन बनाने का कार्य इतना जटिल हो गया कि उसे एक प्रकार से असह्य एवं असम्भव मानकर धृष्टता पूर्वक वापिस लौट जाने तक के लिये कहना पड़ा।

इन दिनों के अनुभव ने यह अनुरोध करने के लिए विवश कर दिया है कि शान्ति-कुञ्ज में ठहरने की सुविधा नहीं है। आगन्तुक लोग धर्मशाला में ठहरने के बाद ही यहाँ आयें। दोपहर को दो बजे बाद ही भेंट वार्तालाप का समय रखें। अपनी आज की स्थिति में यहाँ आगन्तुकों के निवास, भोजन आदि का इतने बड़े पैमाने पर प्रबन्ध कर सकना अपने लिए सर्वथा असम्भव है। अपनी सद्भावना के साथ-साथ हमारी कठिनाई को ध्यान में रखा जाना भी आवश्यक है।

—भगवती देवी शर्मा




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