भगवान के दर्शनों की आकाङ्क्षा (Kahani)

July 1972

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भगवान के दर्शनों की चिर आकाङ्क्षा तृप्त हुई, पर अभी भक्त के मन में कोई एक कौतूहल झाँक रहा था जिसे वह व्यक्त नहीं कर पा रहा था। भगवान् ताड़ गये। उन्होंने पूछा- वत्स तुम जो भी चाहो निःसंकोच पूछ सकते हो।

रुँधे गले को साफ करते हुए भक्त ने पूछा- भगवन् आप सारी सृष्टि के स्वामी है फिर भी दुनिया भर से छिपकर क्यों रहते हैं?

भगवान् हँसे और बोले-तात ! छिपे रहने में ही मेरा कल्याण है- तुम नहीं जानते दुनिया का हर व्यक्ति मुझसे कुछ न कुछ चाहता है, यदि मैं प्रकट हो जाऊँ तो अपनी कामनाओं के लिये लोग मुझे जिन्दा नोंच डालें, इसीलिये अपना काम छुपकर चला रहा हूँ।



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