भारत के राष्ट्रपति श्री वी0 वी0 गिरि से लम्बी उम्र में भी उनका स्वास्थ्य अच्छा रहने और पर्याप्त चुस्त दीखने का कारण पूछा गया तो उनने उस सूत्र को प्रकट किया जिनको अपनाकर वे इस सत्तर से ऊपर की आयु में भी युवकों की तरह काम करते रह सकने में समर्थ हैं। उनने बताया ‘कम खाओ और अधिक काम करो।’ इसी सिद्धाँत को व्यावहारिक जीवन में कार्यान्वित करके वे अपना स्वास्थ्य सुरक्षित रख सके हैं।
कार्नल विश्व विद्यालय में सन् 1930 में एक प्रयोग किया गया था। कुछ चूहों को खाने की मनमौजी छूट दी गई। कुछ को इतना खिलाया गया कि वे जीवित रह सकें प्रयोग कर्त्ता सी0 एम॰ मैक ने घोषित किया कि अधिक खाने वालों की तुलना में कम खाने वाले चूहे दूने दिन जिये।
शिकागो में भी आहार की कमी और वेशी के संबंध में भी चूहों पर प्रयोग चले। प्रो0 ए॰ जे0 कालेमन और फ्रेडरिक होलजेल ने अपने प्रयोग के आधे चूहों को हर दिन बिना नागा भोजन दिया और आधे चूहों को एक दिन भोजन एक दिन उपवास के क्रम से खाना दिया। निष्कर्ष यह निकला कि उपवास करने वाले चूहे 20 प्रतिशत अधिक समय तक जिये। इस परिणाम से उपरोक्त दोनों प्रयोगकर्त्ता इतने अधिक प्रभावित और उत्साहित हुए कि उन्होंने स्वयं भी एक दिन उपवास एक दिन भोजन का क्रम अपना लिया।
आहार में सात्विकता का यदि समुचित ध्यान रखा जाय, उसमें तामसिकता की मात्रा न बढ़ने दी जाय तो उन रोगों से सहज ही बचाव हो सकता है जिनकी चिकित्सा में बहुत धन खर्च करना पड़ता है और बहुत कष्ट सहन करना पड़ता है। वनवासी अनेक असुविधाओं के रहते हुए भी केवल इसी एक आधार पर स्वस्थ और सबल बने रहते है कि उन्हें चटोरेपन की बुरी आदत नहीं होती और कुपथ्य नहीं करते। जीभ पर काबू रखना, रोगों के आक्रमण से सुरक्षित रहने का सबसे अच्छा और सबसे सस्ता तरीका है।
अमेरिका स्वास्थ्य विभाग ने उस देश की जनता में बढ़ते हुए हृदय रोगों का प्रधान कारण कुपथ्य घोषित किया है। शराब, सिगरेट, चाय काफी की भरमार से रक्त में जो अतिरिक्त उत्तेजना उत्पन्न होती है उससे मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है और अनिद्रा का रोग लग जाता है। चिन्ता और उद्वेग की परिस्थितियाँ वहाँ के विलासी और स्वार्थरत जीवनक्रम ने पैदा की हैं। उससे रक्तचाप बढ़ा है। एक दूसरे के प्रति मैत्री और वफादारी शिथिल पड़ गई है इससे जीवन में आई नीरसता ने व्यक्ति को मानसिक रूप से शून्यताग्रस्त कर दिया है यह मनोदशा क्रमशः सनक, शक्कीपन और अर्ध विक्षिप्त स्थिति तक ले पहुँचती है। इस तरह के मानसिक रोगों की बढ़ोतरी वहाँ तेजी से होती चली जा रही है। इस पर कुपथ्य का प्रचलन तो और भी दुहरी विपत्ति उत्पन्न कर रहा है।
हृदय रोगियों के आहार का निष्कर्ष यह निकला कि 40 से 50 वर्ष की आयु वाले लोगों में जो चिकनाई और चीनी कम सेवन करते थे उनमें से लाख पीछे 196 को हलके दौरे पड़े जबकि उसी आयु के अधिक चीनी और अधिक चिकनाई खाने वालों में से लाख पीछे 642 को हृदय के दौरे पड़ते थे और वह भी तेज कष्ट साध्य।
50 से ऊपर की आयु में वहाँ हृदय रोग अधिक होता है पर उसमें भी उपरोक्त दो वस्तुएं कम खाने वालों में से लाख पीछे 379 को तथा अधिक खाने वालों में से 1331 को इस प्रकार के दौरे पड़ते हैं।
सात्विक, सुपाच्य, स्वल्प और स्वच्छ आहार करने की यदि नीति अपनाई जाय, भूख से कम और नियत समय पर खाया जाय और निरन्तर श्रम संलग्न रहा जाय, हँसते खेलते दिन बिताया जाय—तो निस्संदेह हम निरोग दीर्घ जीवन प्राप्त कर सकते हैं।