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Akhand Jyoti
Year 1972
Version 2
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July 1972
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धन की तीन गति हैं- दान, भोग और नाश। जो न देता है, भोगता है, उसकी तीसरी गति होती है।
-भर्तृहरि
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Page Titles
समझदारी कृपणता में नहीं, उदारता में है।
हम अपने को प्यार करें ताकि ईश्वर का प्यार पा सकें
ईश्वर की प्राप्ति सरलतम है और कठिनतम भी
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भगवान के दर्शनों की आकाङ्क्षा (Kahani)
मंत्र साधना के आधार और चमत्कार
सत्य की पहचान (Kahani)
एक सुसम्पन्न सागर हमारे भीतर भी भरा पड़ा है।
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भविष्य से डरिये मत (Kahani)
अहंकार छोड़ें अहंभाव अपनाएं
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कृष्ण का प्रेम (Kahani)
श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाएं
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हिम समाधि बनाम योग समाधि
अशरीरी आत्माएं हमारी सहायता भी करती हैं।
भविष्य वाणी (Kahani)
गुरु से काम नहीं चलेगा- सद्गुरु की शरण में जाएं
साधना का प्रयोजन और परिणाम
Quotation
सच्ची प्रेम भावना सबको अपना बना लेती है।
फ्राइड का काम स्वेच्छाचार एक अनैतिक प्रतिवादन
भगवान तक पहुँचने के तीन ही सहारे(Kahani)
दृष्टा नहीं सृष्टा बनना श्रेयस्कर है।
धैर्ये ना खोईये (Kahani)
बैरी के प्रति विश्वास अपना सर्वनाश
खबरदार इस पानी को पीना मत-खतरा है।
Quotation
न किसी को कैद करें न कैदी बनें
मौत और बुढ़ापा देर तक टल सकते हैं।
आत्मा-प्रतिष्ठा (Kahani)
कम खाओ अधिक काम करो
जीवन सम्पदा के अपव्यय का पश्चाताप
आत्म विकास की रम्य वाटिका (Kahani)
स्मृति का धनी कोई भी बन सकता है।
दीनबन्धु एण्ड्रूज की कहानी (Kahani)
प्रगतिशील जीवन के लिये उत्कृष्ट विचारों का आरोपण
कुण्डलिनी विज्ञान में-कामकला और कामबीज
Quotation (Kahani)
अपनों से अपनी बात - प्रत्यावर्तन की पात्रता विकसित की जाय
Quotation - सन्देश
काश! ईल से भी मनुष्य कुछ सीखता
अमृत की चाह नहीं करता (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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