अखण्ड ज्योति का स्वरूप और प्रभाव

January 1988

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ज्योति के साथ आभा और ऊर्जा जुड़ी होती है। प्रकाश चमकता ही नहीं शक्ति स्त्रोत के साथ दमकता भी है। इसी के सहारे भौतिक और आत्मिक जगत की हलचल चलती प्रेरणाएँ उभरती और प्रगति अग्रगामी बनती है।

भौतिक ज्योतियाँ जलती-बुझती रहती है। ग्रह-नक्षत्रों का आदि अन्त है। उनमें से सूर्य जैसे कुछ दिन में उदय होते और रात को अस्त हो जाते है। कुछ की पारी रात को आती जाती है। चन्द्रमा और तारक रात को प्रकाशित होते और दिन में अदृश्य हो जाते है। दीपक से लेकर चूल्हे की आग तक ईंधन के अनुरूप ही प्रकाश देती और समय पूरा होते ही बुझ जाती है। इसलिए उसे खण्डित माना जाता है।

अखण्ड ज्योति मानवी चेतना के अन्तराल में दृश्यमान होने वाला वह तत्व है, जिसे अध्यात्म की भाषा में ‘श्रद्धा’ कहते है। इसका जहाँ जितना उद्भव होता है, वहाँ उतना ही आदर्श के प्रति निष्ठा का परिचय मिलता है। उसी के सहारे पुण्य-परमार्थ बन पड़ता है। वही है जो उत्कृष्टता के प्रति समर्पित होती है और अगणित विघ्न बाधाओं के साथ जूझती-उलझती अपने गन्तव्य तक पहुँचती है।

श्रद्धा में आभा भी है और ऊर्जा भी। उच्चस्तरीय संकल्प उसी के कारण उभरते है और प्रबल प्रयत्न बनकर उस स्तर तक पहुँचते है, जहाँ मानव को महामानव का, देवमानव को स्थान सम्मान मिलता है। जिसके अन्तराल में ‘श्रद्धा’ उभय समझना चाहिए कि उसने महानता के उच्चशिखर पर पहुँचने की आधी मंजिल प्राप्त कर ली। शेष आधी को उस आधार पर उभरा पुरुषार्थ पूरी कर देता है। यही है अखण्ड-ज्योति का परिचय स्वरूप और प्रभाव।


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