स्वार्थ और परमार्थ का शानदार समन्वय अतिमहत्वपूर्ण अभिनव प्रशिक्षण

January 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अखंड ज्योति परिवार के सभी प्रज्ञापुत्रों को अब पठन-श्रवण तक सीमित न रहकर युग सृजन के रचनात्मक कार्या के लिए अपना समयदान भी नियमित रूप से करना चाहिए। अपने नित्य कर्मों में उपार्जन प्रयोजनों में एक आवश्यक पक्ष इस प्रयोजन को भी मानकर चलना चाहिए।

अभिनव क्रिया कलापों में कुछ संशोधन किये गये है। (1) विचारक्रान्ति (2) आर्थिक क्रान्ति (3) सामाजिक क्रान्ति की अभिनव योजना बनी है। बौद्धिक और नैतिक क्रान्ति का संयुक्त रूप विचार क्रान्ति कहा जायेगा समाज सुधार और सत्प्रवृत्ति संवर्धन की प्रक्रिया भी पूर्ववत् रहेगी। नितान्त नया कार्यक्रम आर्थिक क्रान्ति का सम्मिलित किया गया है। बिखरे देहातों में बसा हुआ अशिक्षित और गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाला समुदाय ही असली भारत है। सम्पन्न वर्ग और मध्यम वर्ग तो ऊंची नौकरियों से अच्छे कारोबार से अपना काम चला लेता हैं। विचार और प्रयास उसी वर्ग के लिए करता है जो प्रगति की घुड़दौड़ में पीछे रह गया है।

इस वर्ग के लिए आर्थिक प्रगति का माध्यम कृषि पशुपालन के अतिरिक्त कुटीर उद्योग ही हो सकते है इसका प्रशिक्षण करना एवं साधन जुटाना हर भावनाशील का कर्तव्य होना चाहिए। उनमें प्रगति की आकाँक्षा जगाना और जिरा भटकाव में वे फँस गये हैं उससे उबारना भी उतना ही आवश्यक है। इसी प्रयोजन के लिए समयदान लगाने का आग्रह किया जा रहा है। इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण छै-छै मास का देते रहने की नई योजना बनी है।

नौ नौ दिन के व्यक्तित्व निर्माण परिवार निर्माण समाज निर्माण के सत्र तो पूर्ववत् चालू रहेंगे। हर महीने तारीख .... तक वे चला करेंगे। उनमें साधनाक्रम तो पूर्ववत् रहेगा। पर नव निर्धारण की नूतन प्रक्रिया से परिचित कराने और उस संदर्भ में आवश्यक मार्ग दर्शन करने की बात भी अतिरिक्त रूप से जोड़ी गई है।

छै महीने के सत्रों में 25 वर्ष से अधिक आयु के शिक्षार्थी सम्मिलित किये जायेंगे। वे स्वस्थ प्रतिभावान शिक्षित सहनशील अनुशासनप्रिय परिश्रमी एवं मिलनसार प्रकृति के होने चाहिए। बूढ़े बीमार आलसी, असमर्थ लोगों को स्थान न मिल सकेगा। जो स्वयं अपने लिए ही एक समस्या बने हुए है वे दूसरों के लिए क्या कुछ कर सकेंगे? पुनरुत्थान के क्षेत्र में क्या योगदान दे सकेंगे?

शिक्षार्थियों की भोजन आवास तथा शिक्षण व्यवस्था निःशुल्क है। वस्त्र पुस्तकें वाद्ययंत्र आदि का खर्च स्वयं वहन करना होगा। इस शिक्षण से उपलब्ध योग्यता द्वारा समाज कल्याण में जो योगदान मिला ही है। साथ में निजी लाभ भी है। जन संपर्क जन सहयोग सम्मान, आत्म संतोष एवं भविष्य में नेतृत्व कर सकने की योग्यता का विकास होना निश्चित है। इन्हीं आधारों पर लोग ऊँचे उठते आगे बढ़ते एवं सफल जीवन जीते हुए महापुरुष बनते रहें है। यह लाभ प्रस्तुत सेवा कार्यों के साथ जुड़े हुए है। साथ ही यह भी सम्भावना है कि जिस आधार पर दूसरों की आर्थिक प्रगति की जानी है उन्हें यदि बड़े रूप में स्वयं भी करने लग जाय तो आर्थिक स्वावलम्बन का एक ऐसा स्त्रोत हाथ लगता है जिसके सहारे आजीविका भी चल सके और सेवा-साधना का सुयोग भी मिलता रहे। सभी प्रज्ञापीठों-स्वाध्याय मण्डलों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने क्षेत्र से अनेक शिक्षार्थी प्रशिक्षण के लिए भेजें। ताकि वे लौटने पर उस क्षेत्र में नवजीवन का आलोक वितरण कर सके। नव जागृति का पुनरुत्थान का आधार खड़ा कर सके।

ग्राम्य–जीवन के हर पक्ष को समुन्नत करने के लिए कोई भी व्यक्ति अपने समय का थोड़ा-थोड़ा भाग लोक मंगल के लिए लगा सकता है। जिनके पास अधिक समय है वे इस हेतु बड़ा कार्य क्षेत्र बना सकते हैं। इतना तो हर किसी से बन पड़ेगा कि अपने घर परिवार में इन प्रवृत्तियों का समावेश करें और अपना तथा अपने परिवार का एक सीमा तक उत्कर्ष कर सकें। इस प्रशिक्षण को स्वार्थ और परमार्थ का समन्वय समझा जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118