सन्त ने आँखें खोली (Kahani)

January 1988

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सन्त एकनाथ किसी पर क्रोध न करने के लिये प्रसिद्ध थे। उनकी नम्रता और सहिष्णुता की सभी प्रशंसा करते।

एक दिन कुछ शरारती लोगों ने उन्हें क्रुद्ध करने की ठानी। उसके लिये एक उत्पाती व्यक्ति को चुना गया। और क्रुद्ध कर देने पर इनाम मिलने का लालच दिया गया।

एकनाथ जहाँ भजन कर रहे थे, वहाँ उत्पाती व्यक्ति पहुँचा और उनके कन्धे पर चढ़ बैठा।

सन्त ने आँखें खोली और मुस्कराते हुये कहा- बन्धु! आप जैसी आत्मीयता बरसाने वाला तो कोई अतिथि मेरे घर आज तक नहीं पधारा। अब आपको भोजन कराये बिना मैं वापस जाने नहीं दूँगा।


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