युगचेतना को व्यापक बनाने का प्रयत्न

January 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अखण्ड ज्योति प्रकाशित होती है और एक महीने बाद अगला अंक आने पर पुरानी मान ली जाती है। यद्यपि उसकी उपयोगिता सदा-सर्वदा यथावत् अक्षुण्ण बनी रहती है, फिर भी उसमें थोड़े-थोड़े पन्नों वाले बहुउपयोगी लेख रहते है। इससे बहुत विषयों की थोड़ी जानकारी भर मिलती है। पर एक ही विषय को गहराई और समग्रता पूर्वक समझने के लिए पुस्तकाकार साहित्य की आवश्यकता पड़ती है। पुस्तकालय स्तर की स्थापना भी उसी आधार पर होती है। किसी प्रसंग को विस्तारपूर्वक और गहराई से समझने के लिए पुस्तकों के अतिरिक्त कोई चारा नहीं।

स्वाध्याय और सत्संग की दुहरी आवश्यकता इन दिनों पुस्तकों से ही पूरी होती है। सत्संग के लिए ऐसी प्रतिमाएँ मिलती नहीं, जो युग समस्याओं को ध्यान में रखते हुए देश-काल-पात्र के अनुरूप मार्गदर्शन कर सके, समस्याओं के समाधान का उपयुक्त परामर्श दे सकें। जो है, वे बहुत व्यस्त है। दूरस्थ देशों में रहती है। कुछ तो दिवंगत भी हो चुकी। ऐसी दिशा में उनसे संपर्क कैसे साधा जाय? और वे हर समय उपलब्ध कहाँ रहें। ऐसी दशा में सत्संग का कार्य भी स्वाध्याय से ही लेना पड़ता है। स्वाध्याय के नाम पर प्रायः कथा-पुराणों का ही अवलम्बन लिया जाता है। ये इतिहास भर है और समय के पीछे के प्रतिपादन करते हैं जबकि आवश्यकता सामयिक और आदर्शवादी यथार्थवादी साहित्य की है। उसका लेखन, प्रकाशन, विक्रय नहीं के बराबर है। बुकसेलरों की दुकानें तो उस कचरे से भरी रहती है, जिनसे घटिया मनोरंजन भर होता है या फिर अंधविश्वास पनपता है।

ऐसी दशा में आवश्यकता इस बात की थी कि जीवन साहित्य कहीं एक जगह उपलब्ध हो। वह भी बाजारू मूल्य का नह हो, जो लागत से कई-कई गुने अधिक मूल्य का होता है। सामयिक, गंभीर चिंतन से सराबोर, अनुभवपूर्ण ऐसा साहित्य जो समय की अनेकानेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता हो, इन दिनों दुर्लभ हो रहा है। जो है वह इतना महँगा कि गरीब देश के स्वल्प शिक्षित नागरिक आसानी से नहीं खरीद सकते। इन सभी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता यह अनुभव हुई कि सर्वसुलभ सस्ते दामों का युग साहित्य प्रकाशित किया जाय। मात्र हिन्दी में ही नहीं, देश की अन्य भाषाओं में भी, जिससे क्षेत्र विशेष के लोग ही नहीं, समूचे देश के लोग लाभान्वित हो सकें।

यह कार्य मथुरा से संचालित युग-निर्माण योजना ने संभाला है। वह गायत्री तपोभूमि की इमारत में अवस्थित है। स्थापना के समय से ही उसका यह कार्य क्रमबद्ध रूप से चल रहा है। अब तक प्रायः एक हजार छोटी-बड़ी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। यह सभी बहुत लोकप्रिय हुई है। समुचित माँग रहने से उनके कई-कई संस्करण छपे है। अपना निजी प्रेम भी ऐसा है, जो अपने प्रकाशन की मुद्रण-व्यवस्था स्वयं कर सकें।

युग-साहित्य का लेखन-सृजन उसी कलम से हो जाता है, जो अखण्ड-ज्योति को विगत 50 साल से लिखती रही है। कहना न होगा कि यह साहित्य नहीं, वरन जीवित युग चेतना है, जिसे युग-निर्माण योजना-गायत्री तपोभूमि द्वारा निरन्तर प्रकाशित और प्रसारित किया जा रहा है।

गुरुदेव की वाणी को उनके सत्संग-संपर्क से ही सुना जा सकता है। छुटपुट संदेश टेप रिकार्डरों और वीडियो टेपों में भी सुने जा सकते है किन्तु विवेचन, प्रतिपादन और मार्गदर्शन उनके लिए युग साहित्य द्वारा ही उपलब्ध किया जा सकता है। प्रमुख उत्तरदायित्व गायत्री तपोभूमि को यही सौंपा गया है। जिसका निर्वाह वह भली प्रकार कर रही है।

अभी हिन्दी, गुजराती, मराठी, उड़िया आदि भाषाओं में ही इस साहित्य के अनुवाद प्रकाशित हो सके है। इन्हीं भाषाओं की मासिक पत्रिका के रूप में भी प्रकाशित किया जाता रहा है। अब नई योजना यह है कि देश की सभी भाषाओं में यह साहित्य पत्रिकाओं के रूप में भी और पुस्तकों के कलेवर में भी प्रकाशित किया जाय। इस योजना के अंतर्गत वर्तमान क्रियाकलाप का प्रायः दस गुना अधिक बढ़ जाने की सम्भावना है। प्रत्यक्ष है कि जन संपर्क, कार्य क्षेत्र भी उसी अनुपात से बढ़ेगा। यह अभिवृद्धि ही व्यापक रूप से नव निर्माण का, युग अवतरण का उद्देश्य पूरा कर सकेगी। देर सबेर में पहुँचना तो विश्व के 500 करोड़ मानवों तक है। हर देश में वहीं के निवासी युग केन्द्र बनाकर अपनी-अपनी भाषाओं में इस साहित्य का प्रकाशन करेंगे।

इस संदर्भ में पहला प्रकाश तंजानिया (पूर्वी अफ्रीका) में हुआ है। दरेस्सलाम के श्री किशोर भाई ठुकराल ने युग शक्ति का प्रदर्शन विगत छह माह से आरम्भ किया है। उसी देश के निवासी श्री अशोक रावल युग साहित्य की कितनी ही पुस्तकें अँग्रेजी भाषा में बम्बई से प्रकाशित करते रहते हैं। इससे पूर्व ट्रिनिडाड (वेस्टइंडीज) के डॉ. परशुराम ने कई पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की थी। इंग्लैण्ड से भी स्मारिकाएँ प्रकाशित होती रहीं है। अब यह उपक्रम विदेशों में अधिक तीव्रता से गतिशील होने जा रहा है।

तेलगू भाषा की मासिक अखण्ड-ज्योति अगले ही दिनों प्रकाशित होने जा रही है। बँगला वाले अपनी तैयारी अलग से करने में जुटे हुए है। यह सब प्रकारान्तर से मथुरा के प्रकाशन का ही विस्तार समझा जाना चाहिए, जो अखण्ड ज्योति के गोमुख से निस्सृत होती है और क्रमशः अग्रगामी सुविस्तृत होती चली जा रही है।

युग साहित्य के पठन, मनन, चिन्तन से उसे व्यवहारिक जीवन में किस प्रकार उतारा जा सकना सम्भव हो सकता है इस प्रयोग के लिए उसी आश्रम से युग-निर्माण विद्यालय की स्थापना हुई जो विगत दो दशाब्दियों से सफलतापूर्वक चल रहा है। इसमें प्रायः पचास छात्रों का बोर्डिंग तथा विद्यालय है। यह सभी छात्र परिष्कृत जीवन की विद्या में तो प्रवीण-पारंगत होते ही हैं, साथ ही औद्योगिक स्वावलम्बन की ऐसी शिक्षा प्राप्त करते है, जिससे नौकरी तलाश करने की आवश्यकता न पड़े और घर रह कर ही समुचित आजीविका उपार्जन कर सकें। यह सभी शिक्षा निःशुल्क है। केवल भोजन व्यय का अपेक्षाकृत सस्ता व्यय छात्रों को वहन करना पड़ता है। छात्र संगीत और प्रवचन की शिक्षा भी प्राप्त करते है। ताकि वे विचार क्रान्ति अभियान को व्यापक बनाने में उपयुक्त भूमिका निभा सकें।

युग-निर्माण योजना के प्रकाशनों में प्रज्ञा-पुराण अतीव लोकप्रिय हुए है। उसके पाँच खण्ड है- बड़े आकार और अधिक पृष्ठों के। उनमें पौराणिक कथा-गाथाओं का प्रायः एक हजार से अधिक का संग्रह है। वे है तो पुरातन काल की; पर उन्हें इस प्रकार प्रतिपादित किया गया है कि वे आज की बहुमुखी समस्याओं का समाधान कर सकें। इन कथाओं की एक फिल्म भी बनने जा रहीं है। इस ग्रन्थ की कथाओं को लोग सायंकाल अपने-अपने परिवार के सदस्यों को एकत्रित कर उन्हें सुनाते है और चरित्रनिष्ठा तथा समाज निष्ठा का सर्वांगपूर्ण प्रशिक्षण देते है। इसका प्रभाव भी असाधारण रूप से पड़ता देखा गया है।

युग-निर्माण योजना का अन्तिम बड़ा प्रकाशन ‘गीता विश्वकोष’ के रूप में छपने की तैयारी हो रही है। उसे उसी लेखनी से लिखा जा रहा है, जिससे अखण्ड-ज्योति लिखी जाती है। इसमें संसार भर में गीता सम्बन्धी प्रायः आठ हजार ग्रन्थों के प्रतिपादनों का सार-संक्षेप होगा। उनमें प्रतिपादित आलोचनाओं, व्याख्याओं, समर्थनों, खण्डनों का समावेश करते हुए यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया जायेगा कि यह सभी प्रतिपादन एक-दूसरे के पूरक है, विभेद और विवाद उत्पन्न करने वाले नहीं।

आवश्यकता इस बात की थी कि विश्व का एक धर्मग्रन्थ हो। उसके आधार पर सार्वभौम दार्शनिक एकता स्थापित की जा सके। यही कारण है कि इस गीता विश्वकोष में जहाँ विभिन्न दार्शनिक पक्षों का समावेश किया गया है, वहाँ संसार के समस्त धर्म सम्प्रदायों के मान्य शास्त्रों के उदाहरण भी इस महाग्रन्थ में समन्वित किये जा रहे है। वहाँ संसार के समस्त धर्म-सम्प्रदायों के मान्य शास्त्रों के उदाहरण भी इस महाग्रन्थ में समन्वित किये जा रहे है। इतने सारगर्भित सूक्ति संदर्भों से परिपूर्ण, इतने विशाल ग्रन्थ का लेखन- प्रकाशन अपने ढँग का अनोखा कार्य ही समझा जायेगा। इसके लिखे जाने और छपने में प्रायः दो वर्ष लगेंगे। तैयार होने पर ही उसकी लागत फैला कर उसमें व्यावहारिक कमीशन का मार्जिन छोड़ते हुए उसका मूल्य छापा जायेगा। सम्भवतः वह तीन सौ से लेकर चार सौ रुपयों की परिधि में जा पहुँचे। अभी तो इच्छुकों के नाम ही पंजीकृत किये जा रहे है। इन लोगों को छपने पर सूचना दी जायेगी और माँग के अनुरूप भेजने की व्यवस्था की जाएगी।

गायत्री तपोभूमि द्वारा दीप-यज्ञ आयोजनों के संचालन की भी व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए शान्ति-कुंज की तरह वहाँ से भी प्रचार गाड़ियां भेजे जाने की तैयारी की जा रही है। कहना न होगा कि जनसंपर्क और सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए इस प्रकार के आयोजनों की आवश्यकता थी, जिनमें नाममात्र का खर्च करके बड़ी संख्या में जनसमुदाय को एकत्रित किया जा सके, उपस्थित जनों को नवसृजन के निर्धारित क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

अखण्ड-ज्योति के मस्तिष्क से उपजी गायत्री तपोभूमि और युगनिर्माण योजना के सामने एक प्रश्न अभी भी है कि देश के 75 प्रतिशत अशिक्षितों को युग-चेतना से कैसे जोड़ा जाय? इस संदर्भ में कुछ उपाय निकाले गये है और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाने की तैयारी में जुटा जा रहा है। इन उपायों में एक उपाय है- दीवारों पर आदर्श वाक्यों का बड़े अक्षरों में लेखन, जिन्हें बच्चे भी पढ़ते है और घर जाकर उस नये उल्लेख की चर्चा करते है। बिना पढ़े भी उन्हें दूसरे पढ़ों के मुँह से सुनते हैं।

इसके अतिरिक्त जीवन सुधार और समाज-परिवर्तन से सम्बन्धित रंगीन चित्रावलियाँ छापी जा रही है, जिनसे प्रस्तुत कुरीतियों के कारण होने वाली हानियों को दर्शाया जायगा और यह बताया जायगा कि यदि उनमें सुधार लाया जा सकें, तो उसका सत्परिणाम किस प्रकार उपलब्ध हो सकता है। देश में नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्रों में प्रचलित अनेकों कुरीतियाँ है, जिनका उन्मूलन आवश्यक है। इसी प्रकार उपेक्षित सत्प्रवृत्तियों का महत्व-महात्म्य गले उतारा जा सके, तो लोग अपना हित-अनहित स्वयं सोच सकते है और उस निष्कर्ष के आधार पर प्रगति पथ पर कदम बढ़ा सकते है।

इसी प्रकार टेपों या वीडियो के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं में संगीत और प्रवचन कराये जाने की बड़ी योजना है। बोल चाल की भाषाएँ प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बदल जाती है। स्थानीय निवासी उन्हीं को ठीक तरह समझा पाते है, इसलिए इनके लिए उसी प्रकार के प्रचार साधन कारगर सिद्ध हो सकते है। ऐसे ही अन्य उपाय भी ऐसे सोचे जा रहे है, जो अशिक्षित समुदाय को उन्हीं की अभ्यस्त बोली में युग चेतना से प्रभावोत्पादक शैली में अवगत करा सकें। अधिकाँश देशवासियों को प्रशिक्षित इसी प्रकार किया जा सकेगा, शीघ्र ही इस प्रकार जन-जागरण का उद्देश्य पूरा होते देखा जाने लगेगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118