अरे मूर्ख गौरैया (Kahani)

January 1988

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अरे मूर्ख गौरैया तू दिन भर ऐसे ही तिनके चुनने में लगी रहेगी क्या? छिः छिः तू भी अजीब है, न कुछ मौज न मस्ती बस वही दिन रात परिश्रम-परिश्रम।

कौवे की विद्रूप वाणी सुनकर भी गौरैया चुपचाप तिनका चुनने और घोंसला बनाने में लगी रही। उसने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ दिन ही बीते थे, वर्षा ऋतु आ गई। एक दिन बादल घुमड़े और जोर का पानी बरसने लगा। गौरैया अपने बच्चों सहित घोंसले में छिप रही और कौवा इधर-उधर मारा-मारा फिरता रहा। शाम को वह गौरैया के पास जाकर बोला-बहन! सचमुच मुझ से भूल हो गई जो तुझे भला-बुरा कहा, तुम्हें इस प्रकार सुरक्षित बैठे देखकर अब मुझे मालूम हुआ कि मेहनत का फल सदा मीठा होता है।


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