ब्गला के एक निर्धन विद्वान प्रतापचन्द्र राय ने महाभारत ग्रन्थ के अंग्रेजी अनुवाद का भागीरथ कार्य प्रारम्भ किया गया था। अनेक राजा-महाराजाओं और सेठ साहूकारों ने उनकी सहायता की, परन्तु लोगों को ऐसा प्रतीत होता था कि विशाल ग्रन्थ का अनुवाद प्रकाशित करना सरल काम नहीं है। इधर प्रतापचन्द्र जी ने अपनी समस्त शक्ति इस कार्य में लगाकर इस दुसाध्य कार्य को सिद्ध कर दिखाया। “आश्वमेधिक पर्व” तक ग्रन्थ का अनुवाद प्रकाशित होने पर प्रतापचन्द्र जी का देहावसान हो गया। मृत्यु के समय भी प्रतापचन्द्र जी को महाभारत की ही चिन्ता थी। अन्त समय में उन्होंने अपनी पत्नी से कहा-”मेरे श्राद्ध के लिए किसी प्रकार का व्यय मत करना। आधे पेट रहकर भी सम्पूर्ण महाभारत के प्रकाशन का प्रबन्ध करना। समझ लेन, यही मेरा सच्चा श्राद्ध है। “पत्नी ने उनके आदेश का पालन किया और एक वर्ष के अन्दर ही सम्पूर्ण महाभारत का अनुवाद प्रकाशित हो गया।