बड़े होने के लिये यह काई बात नहीं है कि मनुष्य को बड़े अधिकार ही मिलें, वरन दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना ही मनुष्य का कर्तव्य है। कर्तव्य-निष्ठा का मूल्य इसलिये अधिक है कि इससे मानव मात्र की सेवा होती है। एक छोटे से क्षेत्र में भी मनुष्य यदि अपने कर्तव्य-कर्मों का मनोयोग पूर्वक पालन करता है तो इसका प्रभाव समस्त समाज पर पड़ता है।
जिन जातियों ने कर्तव्य-निष्ठा का मूल्य समझा और उसे बाह्य-जीवन में निभाया है, वे इस संसार में सदा सम्पन्न रही है। सभी से उन्हें सम्मान भी मिला है। भूलकर जिन्होंने यह समझ लिया है कि सम्मान उनकी सम्पन्नता को मिला। वे गलत रास्ते पर भटक गये। पर कर्तव्य-निष्ठा का जिन्होंने अनुकरण किया है वे आगे बढ़े है। लोगों ने उनकी जागृति को सर झुकाया है। इतिहास के पन्नों में जिनकी कीर्ति प्रकाशित हुई है उन्होंने अपना कर्तव्य जरूर निभाया होगा।
हम क्या करें? यह पूछने की अपेक्षा किस तरह करें? यह पूछना अधिक सही है। क्योंकि कर्म तो दुष्कर्म भी हो सकते है, किन्तु उदात्त दृष्टिकोण से काम करने पर कहीं कुछ कलुष नहीं है। देखने में लगता है लाभ दूसरे को हुआ किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से कर्तव्य पालन के कारण वस्तुतः मनुष्य का निजी हित ही अधिक होता है। कर्म का उपहार जो किसी भी भौतिक लाभ की तुलना में श्रेष्ठ ठहरता है।