ईसा की विदाई का अन्तिम दिन था। उस रात उन्होंने अपने प्रमुख शिष्यों को बुलाया और सभी के पैर धोए।
शिष्यों ने इस पर आश्चर्य किया तो वे बोले- “जो तुम्हें पूजें उनके प्रति तुम भी पूज्य भाव रखना। क्योंकि वे ही तुम्हें श्रेय प्रदान करते हैं। ऐसा न हो कि सम्मान पाकर इतराओ और अहंकार के दबाव में अपनी श्रद्धा गँवा बैठो”।