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नव वर्ष की सम्भावनाएँ भी नवीन है। तेजी से घूम रहा काल चक्र हर रोज अनगिन परिस्थितियों, घटनाचक्रों प्रक्रियाओं एवं उपक्रमों को जन्म दे रहा है। सब कुछ इतना तीव्र और आश्चर्य कारक है कि विश्लेषक चकित हैं और विशेषज्ञ भौचक। उपनिषदों की भाषा में कहें तो ‘न मेधया न बहुनाश्रुतेन’ यानि कि इसे न तो कोरी बुद्धि से समझा जा पा रहा है और न ही बहुत सुनने-गुनने वाले इसे समझने में सक्षम हैं। लेकिन जिनका अन्तःकरण आलोकित है, जिनके पास गहन अंतर्दृष्टि है, वे इन दिनों अनेकों नवीन सम्भावनाओं को जन्मते, पनपते एवं विकसित होते देख रहे हैं।
सन् 2002 में जो कुछ हो रहा है, वह मात्र प्रारम्भ है। प्रक्रिया सुदीर्घ है जो कई वर्षों तक चलने वाली है। अकेले हम ही नहीं समूचा विश्व इस सत्य का साक्षी होगा, कि क्रान्तियाँ किस तरह से मालगाड़ी के डिब्बों की तरह एक के बाद एक आयीं और देखते ही देखते सारा पुराना कूड़ा-करकट अपने साथ उड़ा ले गयी। वर्तमान जिस भविष्य का सृजन करने में तत्पर है वह साफ-सुथरा ही नहीं सुगन्धित भी है। आसुरी शक्तियाँ कितनी ही प्रबल, प्रचण्ड एवं विशालकाय क्यों न हों, पर काल चक्र उन्हें धूल में मिलाए बिना न रहेगा।
इन्हीं दिनों कुछ ऐसे घटनाक्रम जन्म लेंगे, कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उपजेंगी कि जो असुरता को अपने शिकंजे में बुरी तरह से जकड़ लेगी। उसे छटपटाहट के साथ दम तोड़ने के अलावा और कोई मार्ग न मिलेगा। इसी के साथ विश्व मानवता अपने नए इतिहास को रचेगी। कालचक्र के तीव्रगामी वेग से जन्मने वाली नवीन सम्भावनाएँ विश्व मानचित्र में कुछ अचरज भरी फेर बदल भी करेंगी। नवीन सम्भावनाएँ इतिहास को ही नहीं भूगोल को भी नयापन देगी।
इन विशिष्ट पलों में महाकाल के सेवकों-सहचरों का दायित्व भी विशिष्ट है। उन्हें न केवल अपने सृजन अभियान को तीव्र वेग देना है। बल्कि उन्हें इन्हीं दिनों कठोरतम तप साधनाएँ सम्पन्न करके प्रचण्ड आत्मबल भी अर्जित करना है। आत्मबल की धनी ऐसी तपस्वी आत्माएँ ही इन दिनों तीव्र गति से अन्तरिक्ष में उमड़-घुमड़ रही हलचलों को अपनी अन्तर्चेतना में अनुभव करेंगी। और नव वर्ष की नवीन सम्भावनाओं के साकार होने में समर्थ सहयोगी की भूमिका निभा सकेंगी।