तानाजी के पुत्र का विवाह था, तभी कोंडल दुर्ग के लिये युद्ध की सूचना आ पहुँची। तानाजी ने कहा, “अपने देश और समाज के आगे व्यक्तिगत स्वार्थ तुच्छ हैं।” वह युद्ध के लिये चल पड़े। युद्ध में जीत उन्हीं की हुई, पर उनका शरीर काम आ गया। उनकी स्मृति में ही इस दुर्ग का नाम सिंहगढ रखा गया। शिवाजी ने कहा, “तानाजी जैसी जीवन की सार्थकता बिरलों को मिलती है।”