आज की बेचैनी -तनावभरी परिस्थितियों में यदि कहीं कोई ऐसी जगह है, जहाँ शाँति है, जीवन जीने की कला का शिक्षण है तथा तन के साथ मन को भी विश्राम है, तो हर कोई वहाँ जाना चाहेगा। जहाँ धर्म -संस्कृति का विज्ञानसम्मत स्वरूप दिखे तथा जन -जन को अपनी दिशाधारा तय करने का मार्गदर्शन मेले तो व्यक्ति वहाँ पहुँचेगा ही । कुछ ऐसा ही शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ के साथ है। अपनी स्थापना के तीस वर्ष बाद इसके मत्स्यावतार की तरह हुए विस्तार में अब आने वालों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। कोई जिज्ञासा का भाव लिए आते हैं, कोई मात्र दर्शन हेतु तो कोई व्यवस्थित रूप में नियत अवधि का शिक्षण लेने । यदि सभी पहले से समय का नियोजन कर व्यवस्थित दंग से नियमित चलने वाले सत्रों में आएँ तो वे इस आनंद को पा सकते हैं, जो इस कल्पवृक्ष की छाँव में बैठने पर मिलता है। कहने का आशय यह कि वर्षभर चलने वाली विविधता से भरी सत्र -शृंखला में भागीदारी करने का मन लेकर आएँ। इससे सभी को हरिद्वार आने -जाने का ,किराया खरच करने ,कष्ट उठाने के बदले ढेरों गुना लाभ मिलेगा ,जो संभवतः अचानक पहुँचने पर नहीं मिलता ।
शाँतिकुँज में प्रतिमाह 1 से 29 की तारीखों में युगशिल्पी प्रशिक्षण सत्र चलते हैं। इनमें भागीदारी करने वाले सत्रारंभ से एक दिन पूर्व आ जाते हैं, सत्र अनुशासन समझकर नियत दिन से अपनी दिनचर्या आरंभ कर देते हैं। इन सत्रों में कार्यकर्ताओं का सुव्यवस्थित ‘धर्मतंत्र से लोकशिक्षण ‘पर आधारित प्रशिक्षण चलता है। वे लोकरंजन से लोकमंगल की विधा द्वारा संगीत का भी शिक्षण लेते हैं एवं उद्बोधन देने, अपनी बात को सही ढंग से कहने की विधा सीखते हैं। स्वावलंबन प्रधान शिक्षण उन्हें रचनात्मक सोच देता है। भारतीय संस्कृति की सभी मान्यताओं का विज्ञानसम्मत प्रस्तुतीकरण यहाँ होता है। वे नियमित साधना करते हैं, तो उनका शारीरिक -मानसिक परीक्षण भी यहाँ की प्रयोगशाला में नियमित रूप से चलता है। इससे साधना -आहार -जप आदि का प्रभाव देखा जा सकता है।
एक माह यहाँ रहने के बाद परिव्राजक स्तर का प्रशिक्षण लेने वालों को पंद्रह दिन का अतिरिक्त समय वरिष्ठ कार्यकर्ता देते हैं। युगनेतृत्व की हर विधा से साधकों को परिचित कर विभिन्न शक्तिपीठों -देवालयों -रचनात्मक आँदोलनों का संचालन करने के लिए भेजा जाता है। जो ग्राम प्रबंधन, आर्थिक स्वावलंबन तथा राष्ट्र की समृद्धि हेतु किए जा रहे रचनात्मक कार्यों का शिक्षण लेना चाहते हैं, वे 1 दिन के लिए 21 से 8 एवं 1 से 18 तारीखों में आ सकते हैं। एक माह के बाद रुक भी सकते हैं व अलग से भी पूर्वानुमति लेकर आ सकते हैं। रचनात्मक प्रकोष्ठ, गौशाला निर्माण, स्वदेशी आँदोलन से लेकर नाडेप -कंपोस्ट निर्माण तथा वाटर हार्वेस्टिंग ( पानी की खेती ) आदि सभी का शिक्षण वर्ष भर देता है। माह में एक बार एक सप्ताह के ‘रिप्रोडक्टिव एण्ड चाइल्ड हेल्थ’ (आर. सी .एच.) योजना के अंतर्गत मातृ व शिशु स्वास्थ्य व जनसंख्या नियंत्रण पर प्रशिक्षण भी यहाँ चलते हैं।
अपनी जीवन साधना को प्रखर बनाने का जिनका मन हो, वे 1-1 दिन के संजीवनी साधना सत्रों में भागीदारी कर सकते हैं, जो 1 से 1, 11 से 11 व 29 तारीखों में वर्ष भर चलते हैं। कसी हुई दिनचर्या वाले इन सत्रों में गायत्री साधना से लेकर जीवन जीने के हर सूत्र व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण तक की प्रक्रिया का आमूलचूल शिक्षण दिया जाता है। इस अवधि में साधक चौबीस हजार का एक गायत्री अनुष्ठान भी संपन्न कर लेते हैं एवं वरिष्ठ साधकों की अनुभूति प्रधान अमृतवाणी का लाभ लेते हैं, साथ ही साधना विज्ञान के गूढ़तम सूत्रों को गुरुसता द्वारा कराए गए ध्यान द्वारा सीख कर जाते हैं। सभी के लिए पूर्वानुमति लेना आवश्यक है।
जो मौन-एकाकी अंतर्मुखी साधना करना चाहते हैं, उनके लिए आश्विन नवरात्रि से चैत्र नवरात्रि की अवधि में चलने वाले सत्रों हेतु आमंत्रण है। इन सत्रों का नाम है अंतः ऊर्जा जागरण सत्र। इनमें प्रतिदिन दस प्रकार की साधनाएँ कराई जाती हैं। लगभग पाँच दिन मौन रहा जाता है। एक कमरे में एक ही साधक का निवास है। साधनाएँ आडियो माध्यम से संकेतों द्वारा होती हैं। बड़ी उच्चस्तरीय साधना का दमखम रखने वालों के लिए ही इनका प्रावधान है। इनमें अनुमति सभी को नहीं मिलती । पहले विस्तृत विवरण भेजना पड़ता है। व मार्गदर्शिका का अध्ययन कर लेना होता है। जनवरी 22 के अंत तक तो ये सत्र 1 से 4, 6 से 10, 11 से 14, 16 से 20, 21, से 24, व 26 से 30 की तारीखों में चलेंगे, पर फरवरी में वसंत पर्व ( 17/2/2002) होने के कारण 16 से 2 वाला सत्र स्थगित रहेगा। अगले सत्र 21 से आरंभ होने के स्थान पर 2 से 25, 24, फरवरी से 1 मार्च तथा 2 से 6, 7 से 11, 12, से 16, 17 से 21, 22, से 26 से 31 मार्च की तारीखों में चलेंगे। परिवर्तित तारीखें नोट कर लें। अप्रैल 22 में मात्र 2 सत्र है। 1 से 5 व 6 से 1।
शाँतिकुँज में 5 दिवसीय तीर्थसेवन सत्र 14 मई से 3 जून तक नियमित रूप से चलते हैं। इस अवधि में फिर 1 दिवसीय अतिथि सत्र में कोई भी पूर्व सूचना देकर आ सकता है, संस्कारादि संपन्न करा सकता है। अकस्मात् आना पड़े, तो भी व्यवस्था है, पर प्रयास यह रहना चाहिए कि पूर्व सूचना फैक्स, ई-मेल या फोन से दे दें। अति वृद्धों, बीमारों, अनपढ़ आदत वालों, छोटे बच्चों को लेकर चलने वालों के लिए सदा से निषेध रहा है। प्रयास यही होना चाहिए कि 22 में इन सत्रों का अधिकाधिक लाभ उठाया जाए।