बुद्ध शिष्यों को धर्मप्रचार के लिए विदा कर रहे थे। लंबे प्रवास में कठिनाइयाँ आने और नए स्थानों पर विरोध होने, पराजय मिलने की आशंका व्यक्त की जा रही थी।
असमंजस का निवारण करते हुए तथागत ने सशर्त आशीर्वाद दिया, कहा, “जब तक तुम लोग संयमी रहोगे, परस्पर मित्र भाव बरतोगे, जो मिलेगा उसे मिल-बाँटकर खाओगे और लोकमंगल को धर्म मानते रहोगे, तब तक कठिनाइयाँ तुम्हें पराजित न कर सकेंगी।”
आदेशों को हृदयंगम करके वे देश-देशाँतरों में बिखर गए और धर्मचक्र प्रवर्तन को चरम सीमा तक सफल बनाने में समर्थ हुए।