जिया जाय जीवन का हर क्षण

January 2002

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क्षण अति लघु है, परन्तु इसमें विराट् भावनाएँ समायी हैं। यही वह बेशकीमती उपहार है जिसे स्वयं भगवान् ने अपनी परमप्रिय एवं ज्येष्ठ सन्तान मनुष्य को सौंपा है। और बदले में सिर्फ इतनी सी चाहत रखी है कि वह उसके दिए गए इस उपहार का अपने लिए बेहतरीन उपयोग करे। वह इस सत्य को समझे कि उसे दिया गया प्रत्येक क्षण अमूल्य है। हर क्षण में एक अनोखी सम्भावना छिपी है। पर यह साकार तभी हो सकती है, जब इसका सुनियोजन सर्वोच्च स्तर पर हो। लेकिन हम सब इसका उपयोग कैसे और किस तरह से कर रहे हैं? यह एक अहम् सवाल हमसे और हममें से हर एक से है। जिसका जवाब हमें अपने आप में खोजना है।

क्योंकि इसके सही और सटीक जवाब से ही प्रत्येक क्षण के सुनियोजन की कला जानी और सीखी जा सकती है। और यही वह परम दुर्लभ कुञ्जी है, जिसके माध्यम से जीवन के परम लक्ष्य, सफलता के सर्वोच्च सोपान की दहलीज पर कदम रखा जा सकता है। हालाँकि इसके महत्त्व से जन सामान्य कतई अनभिज्ञ नहीं है। फिर भी यह विलक्षणता से परिपूर्ण तोहफा, जितना जाना-पहचाना लगता है, शायद उससे भी कहीं ज्यादा गूढ़, रहस्यमय और अनूठा है। जिसे या तो हम देख नहीं पाते, या फिर इसके अनेकों अदृश्य पहलू हमारे सामने एक अबूझ पहेली की तरह बने रहते हैं, जिन्हें हम सुलझा नहीं पाते।

हममें से बिरले जो ऐसा करने में सक्षम हो पाते हैं, वे स्वभावतः ही मानव के स्तर से उठकर देवमानव की श्रेणी तक पहुँच जाते हैं। इस अबूझ पहेली को सुलझा पाने और न सुलझा पाने वाले दो वर्गों में यदि हम मनुष्य का विभाजन करें तो प्रतीत होगा कि प्रथम वर्ग का प्रतिशत नगण्य सा ही है। कारण- अत्यधिक जन इसे अपनी सामर्थ्य के भीतर की बात न समझ कर प्रयास ही नहीं करना चाहते, या फिर चाहते हुए भी मन मारकर दिन खिसकाते रहते हैं। हालाँकि यह सुस्पष्ट सच है कि हर वो क्षण जो पार हो गया है-भले ही खाली ही क्यों न बीता हो, अपनी एक अनुभूति पास छोड़ जाता है। एक ऐसी अनुभूति जिसमें कई भावों का सम्मिश्रण होता है। यह अनुभव प्रायः हम सब का है।

यह सच है कि सभी क्षण एक समान नहीं हो सकते- अर्थात् एक क्षण दूसरे से अलग ही होगा, एक या दूसरे मायने में। यदि आज होठों पर हंसी है तो कल नयनों में नीर भी झिलमिला सकता है। पर इसमें भी एक अर्थ और गति है, जो पूर्णता की ओर हमें ले जाती है। कहावत है कि सुख के दिन छोटे होते हैं। इस अवधि में मनुष्य इतना खो जाता है कि वे क्षण अत्यन्त लघु मालूम पड़ते हैं। दूसरी ओर दुःख एवं संघर्ष के क्षण मनुष्य पर भारी पड़ते हैं और उससे अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक क्रियाशीलता की माँग करते हैं। अतः उसी अनुपात में वे बड़े मालूम पड़ते हैं।

कमजोर कलेजे के लोग प्रायः ऐसी परिस्थितियों में अपना संतुलन गवाँ बैठते हैं। ऐसे समय में वे घबराकर अपने आस्तिक होने का दावा करते हुए ईश्वर की शरण में जाने की बहाना खोजते हैं। हालाँकि ऐसे में उनका सौ प्रतिशत विश्वास न तो स्वयं पर होता है और न ही भगवान् पर। यदि वे सच्चे ईश्वर विश्वासी हैं, तो उन्हें इन पलों में कम से कम इतना विचार तो करना ही चाहिए कि जीवन के ये क्षण भी अपने ही परम प्रिय प्रभु द्वारा दिए गए विभिन्न रंगों के पुट में लिपटे हुए रंगीन उपहार है। जो जीवन को एक अलग ही शोभा एवं आकर्षण प्रदान कर रहे हैं। अतः इनका भी एक अलग अन्दाज और अनुभव है, जो आने वाले समय में धरोहर बन कर रहेगा।

इसलिए ऐसे में उदासीन, खिन्न व अन्यमनस्क न होकर उन्हें आत्मपरिष्कार की कठोर तप साधना मानकर साहस और जिन्दादिली के साथ जीना चाहिए। ये विपत्ति भरे क्षण प्रायः अगले आने वाले क्षणों पर हमारी पकड़ मजबूत करते हैं। हमारे अन्दर सुषुप्तावस्था में वर्षों से निष्क्रिय पड़े आत्मबल को जाग्रत् कर हमें जीवन्त बनाते हैं। साथ ही निराशा के अंधेरे क्षणों को चीर कर आशा की चमकदार किरणों की भरी-पूरी भीड़ सामने ला खड़ी करते हैं। परन्तु ये लाभ मात्र उन्हें ही प्राप्य है, जो इस कठिन एवं विपन्न स्थिति का सामना उतनी ही साहसिकता व उत्साह के साथ करते हैं, जितना कि ऐसे क्षणों में उनसे अपेक्ष्य है। क्षण दुःख के हों या फिर सुख के उनके सुनियोजन का मूल मंत्र एक ही है- ‘आत्मनो मोक्षार्थ जगद्हिताय च’ अर्थात् आत्म कल्याण एवं लोकहित के लिए ही इनका सदुपयोग किया जाना चाहिए।


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