आ रही ‘हीरक जयंती’ हम पुकारे जा रहे हैं। मातृसत्ता के सपूतों को इशारे आ रहे हैं॥
मातृसत्ता के तराशा है हमें कुछ आश लेकर, अखण्ड ज्योति ने तपाया है हमें विश्वास देकर। अगर हीरा बन गए हैं, तो समय अब आ गया है, मातृसत्ता के लिए हीरे सँवारे जा रहे हैं॥
हमारा व्यक्तित्व, हीरों सा चमकना चाहिए ही, औ अनगढ़ भीड़ में, हमको दमकना चाहिए ही। मातृसत्ता को समर्पित हार हीरों का करें हम, इन दिनों हीरे दमकते ही निखारे जा रहे हैं।
इन दिनों व्यक्तित्व ही नेतृत्व युग का कर सकेंगे, आचरण वाले मनुज ही, प्रेरणाएँ भर सकेंगे। सृजन सैनिक ही टिकेंगे क्राँतियों के मोरचों पर, जो खरे, युग की कसौटी पर उतारे जा रहे हैं॥
नहीं नकली हो प्रमाणित, कोई हीरक जयंती पर, हो बुझा दीपक न कोई, अखण्ड ज्योति आरती पर। मातृसत्ता की निराशा के नहीं कारण बनेंगे, बस यही संकल्प अब मन में उभारे जा रहे हैं॥
मानवी संवेदना विकसाएँगे, मृदु−सीप बनकर, अखण्ड ज्योति की विभा विखराएँगे हम दीप बनकर। अब न भटकेगी मनुजता, भावना से शून्य तम में, नेह भीगे प्राण के दीपक उजारे जा रहे हैं॥
-मंगल विजय ‘विजयवर्गीय’