मरणोत्तर जीवन के सशक्त प्रमाण

February 2001

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मरने के कुछ समय पश्चात् मनुष्य को नवजीवन मिलता है। इस संबंध में अब उपलब्ध तथ्यों का इतना बाहुल्य है कि संदेह और अविश्वास की कोई गुँजाइश ही नहीं रह जाती। इसी तरह चेतना के किसी कारणवश अचेतन अवस्था में चले जाने के बाद पुनः चेतन में आ लौटने के लगभग वैसे ही उपलब्ध अनुभवों की खोज भी अब वैज्ञानिकों ने कर दिखाई हैं।

फ्राँस के मूर्द्धन्य वैज्ञानिक डॉ. डेलाकौर ने इस संदर्भ में गहन अध्ययन−अनुसंधान किया है। उनने मृत्यु के प्रथम चरण से लौटने वाले व्यक्तियों की मनः स्थिति एवं अनुभूतियों को बड़ी गहराई से न केवल निरखा−परखा है, वरन् वैज्ञानिक अनुसंधान की कसौटी पर भी कसा है। उन्होंने अपने ही देश के प्रख्यात अभिनेता डेनियल जीनल पर किए गए परीक्षणों से मरणोत्तर जीवन की वास्तविकता को उजागर किया है।

घटनाक्रम के अनुसार, डेनियल जीनल को अचानक दिल का दौरा पड़ा। उन्हें चिकित्सालय पहुँचाने और आवश्यक चिकित्सा सुविधा तुरंत उपलब्ध कराने में देरी हो गई। ऑपरेशन थियेटर में चिकित्सकों ने देखा कि उसके हृदय की गति पूरी तरह अवरुद्ध हो चुकी हैं। दिल की धड़कन रिकॉर्ड करने वाली मशीन ई. सी. जी. की सुई ने घूमना बंद कर दिया है। अतः उसे मृत मान लिया गया। कुछ देर बाद डॉक्टरों ने देखा कि मशीन की सुई अचानक ही फिर से हिलने−डुलने लगी है, तो उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा।

डेनियल की आँख खुली तो उससे बातचीत करने का सिलसिला भी चला। दिल का दौरा पड़ने के बाद से लेकर नेत्र खुलने तक की समयावधि में क्या हुआ? इस रहस्य को उजागर करते हुए उसने बताया, “पहले तो मैंने एक कमरे में तैरना आरंभ किया, जहाँ भय−सा लग रहा था। मुँह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। इसके बाद देखा कि सामने अपने दिवंगत माता−पिता खड़े हैं। उन्होंने साँत्वना बँधाते हुए थपथपाया और अपने साथ रंग−बिरंगे फूलों से महकते हुए बगीचे में ले गए। डेनियल के माता−पिता और छोटे बच्चे पास्कल का देहाँत पहले ही हो चुका था, जो उस बगीचे में खेल−कूद रहा था। कुछ ही क्षणों बाद माँ ने धीरज बँधाते हुए कहा, अब तुम यथावत् लौटा जाओ, जिंदगी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं।” तभी ई. सी. जी. मशीन पर दिल की धड़कनों का रेखाँकन शुरू हो गया।

अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्साविज्ञानी डॉ. बने राबट्स ने भी इस संबंध में महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किया है। उनके अनुसार मरणासन्न व्यक्तियों के पास बैठने से यह पता चलता है कि जीवन की आखिरी साँस लेने से पूर्व वे अपने निकटवर्ती पारिवारिक सदस्यों, समुदाय के व्यक्तियों के साथ अधिक−से−अधिक वार्त्तालाप करना चाहते हैं। कभी−कभी तो वे ऐसी अलौकिक एवं आश्चर्यजनक घटनाओं का उल्लेख करते हैं, जिन्हें सुनकर हतप्रभ रह जाना पड़ता है। उनने ग्रीस के किंगपाँल नामक व्यक्ति की एक ऐसी ही रोचक घटना का वर्णन अपनी कृति में किया है। उसके अनुसार, एक बार अचानक ही किंगपाँल अचेतन अवस्था में चला गया। कुछ देर बार होश में आया तो उतनी अवधि के अनुभवों को अपनी पत्नी के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बताया, मैं ऐसा महसूस कर रहा था कि मानो किसी नदी के किनारे पर खड़ा हूँ और सामने काले रंग की सड़क है। उसके आखिर में प्रकाश किरणें स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही हैं।

एक दस वर्षीय हैंस नामक बालक के अनुभव तो और भी चौंका देने वाले हैं। हैंस के माता−पिता उसे प्यार से हैरा कहकर पुकारते थे। एक बार हैरा किसी दीवार के नीचे दुर्घटनावश दबकर बुरी तरह घायल हो गया। चिकित्सकों ने बच्चे को चेतनाशून्य अर्थात् मृत घोषित कर दिया। माता−पिता की ममता को यह कतई विश्वास नहीं हो रहा था कि उनका बैटा हैंस मर चुका है। वे उसको जीवित ही मानते रहे। दैवी विधान की विचित्रता को भला कौन समझ सकता हैं? ठीक चौबीस घंटे बाद हैंस की चेतना पुनः लौट आई। साँसें चलने लगीं, दिल धड़कने लगा। परिवार के अन्यान्य सदस्यों एवं पास−पड़ोस के लोगों को इस विचित्र एवं विलक्षण घटना के बारे में जब पता चला, तो उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा ओर बच्चे को देखने के लिए समूचा निकटवर्ती समुदाय आ पहुँचा।

चौबीस घंटे अचेतन अवस्था की अनुभूतियों के बारे में पूछे जाने पर हैंस ने इस अवधि में एकत्रित अनुभवों को

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उपस्थित आत्मीयजनों के सम्मुख कह सुनाया। उसने बताया कि मैं एक ऐसी दुनिया में चला गया, जहाँ अत्यधिक आनंद की अनुभूति होने लगी थी। वहाँ के बच्चों को खेलते−खेलते देखकर मेरा भी मन उनके क्रिया−कलापों में भाग लेने का हुआ, तो मैंने उनसे अनुमति माँगी, लेकिन मेरे प्रस्ताव को उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अस्वीकृत करते हुए कहा, “तुम्हारा अभी यहाँ आने का समय नहीं हुआ है। साँसारिक कर्त्तव्यों के निर्वाह हेतु तुम पुनः वापस चले जाओ।” इस प्रकार मैं फिर से अपनी चेतना में वापस लौट आया। हैंस स्वस्थ होने पर पूर्व की भाँति अपनी दिनचर्या बिताने लगा।

यह एक तथ्य, किंतु आश्चर्यजनक सत्य है कि मरणोपराँत भी जीवात्मा फिर से उसी पुराने कलेवर को धारण करने के लिए सहमत हो जाती है। प्रायः देखने में आता है कि मृत्यु के उपराँत का यह अल्पकालीन समय लोगों के लिए बड़ा ही शाँति एवं सुखमय व्यतीत होता है, लेकिन कभी−कभी स्थिति इसके विपरीत भी दिखने लगती है। दृश्य इतने भयावह−डरावने लगते हैं कि उन्हें देखकर दर्शकों के ही नहीं, श्रोताओं के भी रोंगटे खड़े होने लगते हैं।

‘लाइफ बिफोर लाइफ’ नामक अपनी कृति में विख्यात परामनोविज्ञानी एवं सम्मोहन विद्या के विशेषज्ञ हेलेन वेम्बेक ने अचेतन अवस्था की अनुभूतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उन्होंने मरणोत्तर जीवन एवं अचेतन के स्मृति भंडार का पता लगाने के लिए कई व्यक्तियों को सम्मोहन विद्या के द्वारा वशीभूत किया। मृत्यु के पश्चात् और चेतन अवस्था में आने तक के अनुभवों के बारे में जब उनसे पूछा गया, तो प्रत्युत्तर में यही सुनने को मिला कि उस अदृश्य दुनिया के अशरीरी लोग अर्थात् जीवात्माएँ छाया की भाँति मार्गदर्शक और सहायक का काम करती हैं और अपने स्थान पर पुनः लौटने का सत्परामर्श देती हैं।

इंग्लैंड में सर्वाधिक लोकप्रिय समाचार पत्र ‘दी टाइम्स’ में पिछले दिनों मनुष्य के पुनर्जम्म से संबंधित अनेकों घटनाएँ छप चुकी हैं। जिन लोगों ने अपनी रिपोर्ट कमेटी के सामने प्रस्तुत की, उनमें से अधिकाँश ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक एवं अपने क्षेत्र के जाने−माने विशेषज्ञ थे। इनमें से एक थे, फ्राँस के सुविख्यात खगोलविज्ञानी कैमिले फ्लेमेरियन, जिन्होंने उन्नीस वर्ष की आयु में सन् 1861 ई. में ‘साइकिक’ शब्द की खोज की, जिसे अध्यात्म विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी समझा जाता है। उन्हें यह प्रेरणा अपने समय के मूर्द्धन्य दार्शनिक मनीषी अलान कार्डेक की पुस्तक ‘दी बुक ऑफ स्पिरिट’ से मिली। कार्डेक के मतानुसार, अध्यात्म ज्ञान की उपलब्धि का एकमात्र कारण पुनर्जन्म की सत्यता है। उन्होंने अपने सिद्धाँतों की पुष्टि करते हुए बताया है कि मृत और जीवित व्यक्ति के मध्य आदान−प्रदान का जो क्रम चलता है, इसमें आत्मा की ही मुख्य भूमिका है। इस खोज के लिए शरीरगत नहीं, मनोवैज्ञानिक कारण अधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। अपने विचारों से अवगत कराने हेतु उन्होंने पेरिस में ‘सोसाइटी ऑफ साइकोलॉजिकल स्टडीज’ की स्थापना की। फ्लेमेरियन ने इसी सोसाइटी में प्रवेश पाया और उन तथ्यों को ढूँढ़ निकाला, जिनसे आत्मा की अखंडता ओर नित्यता सिद्ध होती है। सन् 1923 में फ्लैमेरियन को उक्त सोसाइटी के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। अपने साठ वर्ष के गहन अनुसंधानों का ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए उन्होंने बताया कि मनुष्य में कोई अदृश्य शक्ति ऐसी हैं, जो मरने के बाद भी अपना अस्त्वि बनाए रखती है। सोसाइटी की पूरी रिपोर्ट को चार सौ पृष्ठों में प्रकाशित किया गया। इसके बाद तो वैज्ञानिकों के लिए मरणोत्तर जीवन पर अनुसंधानों का रास्ता खुल गया। अनेक भौतिकविज्ञानियों ने भी अपनी अभिरुचि को इस ओर केंद्रित किया। थैलियम तत्त्व के अन्वेषक विलियम क्रूक्स का नाम अध्यात्मविज्ञानियों की इस श्रृंखला में अग्रणी माना जाता है। उन्होंने श्रीमती क्रुक की चमत्कारी क्षमताओं का बड़ी गहनता के साथ अध्ययन किया है। वे स्वयं भी आत्मबल के धनी समझे जाते थे।

दिसंबर 1870 की ‘साइंटिस्ट डायरी’ में ‘क्रूक्स एण्ड दी स्पिरिट वर्ल्ड’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें विलियम क्रूक्स की अतींद्रिय क्षमताओं पर प्रकाश डाला गया है। क्रूक्स ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा, “हे ईश्वर! मुझे अपने भाई की दिवंगत आत्मा के साथ बातचीत करने का सुअवसर प्रदान करें, जिसकी मृत्यु तीन वर्ष पूर्व जलयान में डूबकर हो गई थी।”

ईश्वर की सृष्टि में चेतना का प्रमुख आकर्षण प्रेम और स्नेह−सद्भाव है। उसे भरपूर स्नेह−सद्भाव, प्यार मिलता रहे, तो वह एक शरीर छोड़ने और कुछ समय विश्राम करने के बाद पुनः उसी रूप में नए परिधान में आ जाती है। घर−परिवार में सुसंस्कारिता का वातावरण विनिर्मित किया जा सके, तो जीवंत एवं जाग्रत् जीवात्मा को तो सुख मिलेगा ही, साथ ही शरीर छूटने पर भी वह उसी परिवेश में जन्म लेना या आना अधिक पसंद करेगी।


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