आशा, उत्साह व गति का समन्वय ही जीवन है। जिसमें जीवन का अभाव हैं, वह इन तीन गुणों से रहित होता है। ऐसे का पुरुष जीवित अवस्था में भी मृतक के समान होते हैं।
रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे, कुकर्म करने तथा बुराई को प्रश्रय देने वाला मनुष्य जीवित दीखता हुआ भी मृत ही है, क्योंकि कुकर्म और कुविचार मृत्यु के प्रतिनिधि है। इनको आश्रय देने वाला मृतक के सिवाय और कौन हो सकता है।