विशेष सामयिक लेख राष्ट्रव्यापी−दुर्भिक्ष और हम

February 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आज की सबसे बड़ी चुनौती है पर्यावरण का प्रदूषण। अतिशय सुविधा पाने की अदम्य लालसा का ही प्रतिफल है कि आज चारों ओर प्रदूषण से भरा पर्यावरण दिखाई देता है। औद्योगीकरण, शहरीकरण तथा सीमेंट कंग्रीटीकरण ने वनों के कवच को क्रमशः समाप्त किया एवं बढ़ती हुई आबादी ने उसमें घी की आहुतियाँ दीं। पिछले दिनों का ऋतु विपर्यय हम सभी को एक चेतावनी देता हुआ आया है कि यदि अभी भी हम न संभलें, तो महाविनाश सुनिश्चित है।

इस समय सबसे बड़ा संकट जो राष्ट्र के सामने आ खड़ा हुआ है, वह है सूखे का, दुर्भिक्ष का जो पूर्वी तट बंगाल की खाड़ी से लगे उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राजस्थान से लेकर गुजरात के अधिसंख्य भाग सौराष्ट्र−कच्छ में बड़ भीषण रूप में प्रस्तुत होते जा रहा है। मानसून की वर्षा पर निर्भर भारतवर्ष से इन दिनों मौसम देवता बहुत नाराज चल रहे हैं। रौद्र प्रकृति यों तो सारे विश्व में कुहराम मचाए हुए है, हमारे इस विकासशील कृषिप्रधान देश में इसका प्रकोप कुछ ज्यादा ही है। आँध्रप्रदेश से लेकर पंजाब तक किसानों के द्वारा आत्महत्या करने का क्रम जारी है। यह एक चेतावनी है, खतरे की लाल झंडी है। हर वर्ष सूखा आता है, समुद्री तूफान आते हैं एवं आसाम, पूर्वी उत्तरप्रदेश एवं बिहार में बाढ़ का कहर बरपता है। जितना हम आगे बढ़ते हैं, उतने ही पीछे हटते जाते हैं। और देश न जाने कहाँ−से−कहाँ पहुँच गए, हम वहीं हैं, अब तो ऐसा लगने लगा है कि वैश्वीकरण की होड़ में कहीं हमारा मूल स्रोत कृषि संपदा ही दाँव पर न लग जाए। ‘लाँग टर्म’ उपचार सोचे जाने चाहिए, सोचे जा रहे हैं, पर उनके पीछे मिशनरी उत्साह वाला प्रेरक बल नहीं है। करोड़ों−अरबों रुपयों की राशि बती चली जा रही हैं।

आइए। निगाह वर्तमान संकट पर दौड़ाएँ। गायत्री परिवार एक अशासकीय स्तर पर बिना शासन की वित्तीय सहायता के कार्य करने वाला सबसे बड़ा समाज निर्माण को, आध्यात्मिक चेतना के विस्तार को समर्पित संगठन है। इससे सभी को आशाएँ हैं। हमारे बहुत से परिजन इस क्षेत्र में निवास भी करते हैं। हमें क्या करना चाहिए, यह अधिकांश परिजन विभिन्न प्राँतों से अक्सर पूछते रहते हैं। इस युगधर्म सोचे हैं, जो सूखे की इस दावग्नि में कुछ तो बूँदें बरसाएँगे, कुछ तो राहत देंगे।

श्रूमप्रधान राहत कार्य

इसमें गाँवों के तालाबों को गहरा करना, सामूहिक श्रमदान की प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर राहत कार्यों में सही व्यक्ति तक उसका मूल्य पहुँचाना तथा जल व मिट्टी के संरक्षण, जल की भूमि पर खेती (जलागम विकास) जैसे प्रयास आते हैं। यह कार्य 2700 जलागम क्षेत्रों के लिए गायत्री परिवार ने 1991 में हाथ में लिया था। पर शासकीय स्तर पर असहयोग व जलागम दीपयज्ञ का झुनझुना हाथ में थमाकर शासन ने पल्ला झाड़ लिया। यदि यह उस गति से चलता, जैसा कि तत्कालीन केंद्रीय सचिव महोदय ने परिकल्पना की थी, तो आज जो संकट दिखाई देता है व सभी के मुख पर ‘वाटर हारवेस्टिंग‘ की बात चल रही है, यह लगभग पूरी हो गई होती। जब इसे नए सिरे से अपने ही प्रज्ञा संस्थानों, परिजनों को मिशनरी स्तर पर हाथ में लेना होगा। कैसे करें, उसके लिए शाँतिकुँज के रचनात्मक प्रकोष्ठ से संपर्क करें।

(2) साधनप्रधान योगदान

हम मध्यवर्ग, निम्न मध्यमवर्ग के सभी परिजन हैं। यदि मात्र अखण्ड ज्योति के पाठक प्रति सप्ताह एक समय का भोजन न लें, व्रत रखें व उसकी राशि संकलित करें, तो कितना बड़ा कोष खड़ा हो जाएगा, इसकी कल्पना करें, एक माह में 4 बार के भोजन की बचत। यदि पाँच रुपया न्यूनतम भी एक समय का भोजन मानें, तो बीस रुपये प्रतिमाह। दो सौ चालीस रुपया प्रतिवर्ष। यदि उसका साढ़े छह लाख पाठकों की संख्या से गुणा कर दिया जाए, तो यह राशि दो करोड़ पैंसठ लाख रुपये बैठती है। एक वर्ष में मात्र अखण्ड ज्योति के परिजन इतनी राशि संग्रह कर सकते हैं। यदि प्राणवान्−निष्ठावान्, दीक्षित, शुभेच्छु, सहयोग प्रायः पाँच करोड़ रुपये बैठती है। क्या इतना हम नहीं कर सकते कि एक प्रामाणिक तंत्र जिला स्तर पर खड़ा करें एवं परिजनों के संग्रह की राशि जमा करते चले एवं जहाँ दैवी आपदाओं में राहत राशि−अन्नदान−जल व्यवस्था−बीज आदि की व्यवस्था की जरूरत हो, केंद्र के मार्गदर्शन में उसका नियोजन करते चलें। जिलास्तरीय संगठन केंद्र द्वारा ही नामित होंगे व यहाँ का दैवी आपदा प्रबंधन तंत्र सारा क्रम हाथ में लेगा, पर सूचनाएँ एकत्र करना व वितरण करने का कार्य तो परिजनों को ही करना है। पारदर्शी तंत्र बने, इसका ध्यान सभी को रखना है, नहीं तो चंदा एकत्र करने वालों की आडंबरी भीड़ से पल्ला छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा।

(3) साधनाप्रधान प्रयोग

उपचार−अध्यात्म तंत्र के अंग होने के नाते हम अपनी साधना में दैवी विभीषिकाओं के निवारण हेतु अतिरिक्त जप तो करें ही, सबके, उज्ज्वल भविष्य की सद्भावपूर्वक प्रार्थना भी साथ जोड़े। वरुण गायत्री मंत्र से यदि दैनिक या साप्ताहिक अग्निहोत्र, बलिवैश्व आदि आहुतियाँ समर्पित की जा सकें, तो इसके सकारात्मक परिणाम

निश्चित ही निकलेंगे। मंत्र इस प्रकार है−

ॐ जलबिम्बाय विद्महे, नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुणः प्रचोदयात् स्वाहा। इदं वरुणाय इदं न मम।

ध्यान रखे कि इसके लिए कहीं भी किसी को बड़े यज्ञ करने की जरूरत नहीं है। जो नियमित यज्ञ−अग्निहोत्र चलता है, उसी में इन आहुतियों को भी जोड़ लें। परमसत्ता से प्रार्थना है कि वह इस दैवी आपदा को ठीक करने में मानवी पुरुषार्थ की सुनवाई अवश्य करेगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles