जागरूकता और प्रखरता का एक अद्भुत समन्वय अंगद के चरित्र में देखने को मिलता है। वे रावण के दरबार में जा पहुँचे और उससे साहसपूर्वक वार्त्तालाप किया। रावण के मित्र बालि के पुत्र होने के नाते प्रभु ने उन्हें दूत के रूप में भेजा था। परस्पर उत्तेजक संवाद के बाद जब रावण अंगद के पैरों को भी हिला न पाया, तो उसने एक कूटनीतिक चाल चली।