भगवान की लाठी

August 2001

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बस विधून से चल पड़ी थी और खराब रास्ते पर लड़खड़ाती हुई आगे बढ़ रही थी। गाँव के लोग उसमें भेड़-बकरियों की तरह ठुँसे हुए थे। ग्रामीण महिलाएँ लंबे-लंबे घूँघट काढ़े बड़ी-बड़ी चादरों में लिपटी-सिपटी बैठी थीं। अधनंगे बच्चे रोते-पिनपिनाते चले जा रहे थे।

अक्टूबर का महीना था। इसलिए मौसम काफी खुशगवार था। वह भी अपने गाँव से वापस आ रहा था। कुछ दूर चलकर कंडक्टर ने उसे आवाज दी, बाबूजी। यह सीट खाली है। आप इधर आ जाएँ। वह भीड़ में से रास्ता बनाता हुआ वहाँ जा पहुँचा। इस बीच बस चलती रही और यात्रियों के अनुरोध पर माधोबाग बाजार के पास रुक गई। वहाँ से एक बूढ़े बाबा और उसके साथ दो जवान लड़के बस पर चढ़े । बाबा की उम्र पचास-पचपन के करीब होगी। सफेद धोती, सफेद कुरता, सिर पर बड़ा-सा पग्गड़ और सफेद दाढ़ी ने उन्हें काफी रौबदार बना दिया था। उनके साथ बस पर सवार हुए दोनों लड़के माहौल से बेखबर बातों में मग्न थे। वे ऊँची आवाज में कोई घटना एक-दूसरे को सुना रहे थे और हँस रहे थे।

जब भी उसकी नजरें सामने की ओर उठतीं, उसने बाबा की खिड़की के धुँधले शीशे से बाहर ही झाँकते पाया।

अचानक बस एक अगले स्टॉप पर रुकी। वे दोनों शरारती और बातूनी लड़के उतर गए। कुछ दूसरे लोग जो खड़े थे, वे आकर उस सीट पर विराजमान हो गए। बस कंडक्टर टिकट देते हुए आगे बढ़ रहा था। उसने बाबा से भी गंतव्य स्थान पूछते हुए कहा, बाबा। आप तो माधोबाग से बैठे हैं न। हाँ बेटा। कहते हुए बाबा ने भी टिकट लिया और उसी वक्त बाबा के साथ बैठे व्यक्ति ने अपनी जेबों पर हाथ मारकर कहा, हाय... मेरे पैसे..... हाय, मैं तो लुट गया... बस रोको, अरे भाई बस रोको... मेरी तो जेब कट गई है। किसी ने मेरी जेब से पाँच सौ रुपये निकाल लिए हैं।

अरे भाई। जरा अपने पास ही एक बार देखो। कहीं तुमसे कोई गलतफहमी तो नहीं हो गई।

वह रुआँसी आवाज में बोला ... मेरे से गलती, आप लोग मेरी तकलीफ क्यों नहीं समझ रहे। जिसका पैसा निकल जाता है, वह गलती नहीं कर सकता। मैं अच्छी तरह होशो-हवाश में हूँ। अभी-अभी थोड़ी देर पहले मेरी जेब में रकम थी। अब टिकट लेने लगा हूँ, तो जेब बिलकुल खाली है। वह काफी तेज आवाज में बोल रहा था।

किसी थाने के आगे बस रोको जी। पुलिस वाले खुद ही सबकी तलाशी ले लेंगे। कोई न उतरे बस से, चलो ड्राइवर साहब।

मैं तो यहीं पास में उतरुँगा। बस में कोई मिमियाया। हरगिज नहीं। अब तो सबको नौबस्ता पुलिस चौकी तक चलना पड़ेगा। कंडक्टर ने किसी बड़े जज की तरह अपना फैसला सुना दिया।

पूरे पाँच सौ थे। सौ-सौ के पाँच नोट। वह व्यक्ति जोर-जोर से बोल रहा था।

बस में हंगामा मचा हुआ था। कंडक्टर ने सब खिड़कियाँ बंद करवा दी थीं। लोग अपनी-अपनी जेबें टटोल रहे थे कि कहीं वह भी किसी जेबकतरे का शिकार न हो गए हों। अज्ञात चोर को सभी बुरा-भला कह रहे थे। हर व्यक्ति दूसरे को संदिग्ध नजरों से देख रहा था।

अभी पता चल जाएगा जी। किसने मेरे नोट निकाले हैं। मेरे नोटों के कोनों पर नीली स्याही का निशान है। अभी पता चला जाएगा... चोर बचकर आखिर जाएगा किधर।

मिल जाए तो सौ जूते लगाओ चोर को।

हो सकता हैं, जिसने जेब काटी हो, वह पिछले स्टॉप पर ही उतर गया हो।

नहीं, क्या कहते हैं आप लोग। अभी थे मेरे पास... जब स्टॉप से बस चली है, तो मैंने टिकट के लिए खुद यह दो रुपये ऊपर वाली जेब में रखे थे।

भाई साहब। आप फिक्र न करें... चोर बचकर नहीं जा सकता। कंडक्टर ने उसे आश्वासन दिया। वह व्यक्ति जिसके रुपये चोरी हुए थे, अपने हुलिये से किसी दफ्तर का क्लर्क लगता था। कॉटन की बुशर्ट और मामूली कपड़े की पतलून, उसकी उम्र यही कोई तीस-पैंतीस साल के आसपास की होगी। ऐसे परिश्रमी और सफेदपोश के पाँच सौ रुपये गुम हो जाने का मतलब तो एक महीने की तनख्वाह का सफाया होना है... शायद यह उसकी तनख्वाह ही हो, बेचारा। उसके बड़े अफसोस के अंदाज में सोचा।

वह तो विधून से बस पर चढ़ा था और उसे कुछ अपने काम की जल्दी भी थी।

जरा देर बाद बस नौबस्ता पुलिस चौकी के पास रुक गई। ड्राइवर उतरकर पुलिस चौकी में चला गया। सब लोग एक अजीब-सी कशमकश में बस की खिड़कियों के शीशे से झाँक रहे थे।

ड्राइवर पुलिस चौकी से जब बाहर आया, तो उसके साथ दो सिपाही और दरोगा साहब थे। कंडक्टर दरवाजे की सिटकनी लगाए बड़े सावधान तरीके से खड़ा था। जब पुलिस वाले आ गए, तो सवारियों को एक-एक करके उतारा गया। हर व्यक्ति की अच्छी तरह तलाशी ली गई। दो सिपाही बस के दरवाजे के सामने खड़े थे और वह व्यक्ति जिसके पैसे चोरी हुए थे, सिपाहियों के साथ खड़ा उन्हें इस हादसे का ब्यौरा सुना रहा था।

औरतों ने अपनी तलाशी लेने पर प्रतिरोध किया था। इसलिए दरोगा जी ने निश्चय किया, पहले मरदों की तलाशी ले लीजिए और फिर एक औरत सब औरतों की तलाशी ले ले। सामान भी चैक होगा और पूरी बस भी। कहीं किसी ने रुपये बस में इधर-उधर फेंक दिए हों।

एक-एक करके तलाशी ली जाने लगी। तलाशी के इस क्रम में कई लोगों के बाद वह बाबाजी भी उतरे और उसकी तलाशी शुरू होते ही शोर उठा... यह .... रहे मेरे पैसे।

सिपाही ने बाबा को गरेबान से पकड़कर उनके मुख पर थप्पड़ जमाते हुए कहा, ओ बुड्ढ़े। तुझे शर्म नहीं आई जेब काटते हुए। शकल फरिश्तों की और करतूत शैतानों की।

हाय, तनिक देखो तो इस बुड्ढे की करतूत। एक महिला ने खेद प्रकट करते हुए कहा।

खुदा की कसम, यह रुपये मेरे हैं। मैंने आज ही माधोबाग की बाजार में बकरियाँ बेची हैं। यह रुपये उसी के हैं।

बकवास कर रहा है। मक्कार। ओ बुड्ढे। अपनी इस लंबी दाढ़ी की तो लाज रखनी थी। सिपाही ने उस बूढ़े बाबा को झिंझोड़ते हुए डाँटा। उसकी पगड़ी खुलकर पैरों में आ रही थी।

इधर-उधर से भी काफी लोग इकट्ठे हो गए थे और वे सबके सब अपनी-अपनी बोली और अपने-अपने लहले में उसे धिक्कार रहे थे। देखो जी, भरोसा नहीं होता कि यह बूढ़ा भी जेबकतरा हो सकता है। अरे भाई। आजकल फरिश्तों जैसी शक्लों वाले ही धोखा देते हैं। तोबा। तोबा। पैर कब्र में और यह हरकतें।

किसी ने कहा, अरे भई कलजुग है कलजुग। ऐसी ही और भी अगणित बातें, व्यंग्य भरे जुमले हवा में तैर रहे थे। कुछ लोग कह रहे थे कि बाबा ने अगर बुढ़ापे में इतनी सफाई से जेब काटी है, तो जवानी में इसका क्या हाल रहा होगा। हर व्यक्ति को बाबा के चोर होने का पूरी तरह से यकीन हो गया था, लेकिन उसका अब भी आग्रह था कि ये रुपये उसी के हैं। उसके जर्द चेहरे पर बेबसी छा रही थी। वह अपमान और रुसवाई से पीड़ित होकर सुबक रहा था।

दारोगा जी ने बटुआ खोलकर उसके असल मालिक को रकम लौटा दी। उस आदमी ने दारोगाजी, सिपाहियों और उस कंडक्टर का धन्यवाद किया और पाँच-पाँच के दो नोट सिपाही की तरफ बढ़ा दिए, हवलदार जी। चाय-पानी के लिए।

दूसरा सिपाही बाबा को बेदर्दी से ढकेलता हुआ पुलिस चौकी की तरफ ले चला। उसने अपनी शहादत की

उँगली उठाकर आसमान की तरफ देखा और बेचारगी से पुकारा, ‘या अल्लाह.. तू इन्साफ कर .. ‘चल, चल, ज्यादा ड्रामा न कर बुड्ढे। अंदर चल। तेरा पिछला रिकॉर्ड भी देखेंगे।

वह व्यक्ति जिसके रुपये चोरी हुए थे, पास खड़े एक ताँगे पर जा बैठा और ताँगा चल पड़ा। सब आश्वस्त थे कि चलो हकदार को उसका हक मिल गया। लेकिन ताँगा अभी थोड़ी ही दूर चला था कि सामने से आते हुए एक तेज रफ्तार ताँगे से इस जोर से टकराया कि सवारियाँ उछलकर इधर-उधर बिखर गई। चीख-पुकार का शोर उठा, सभी की नजरें उसकी ओर उठ गई। दुर्घटना अचानक और अप्रत्याशित थी, सभी मुँह फाड़े खड़े थे।

सबसे अधिक विचित्र बात तो यह थी कि गिरने-लुढ़कने के बाद ताँगे की अन्य किसी भी सवारी को कोई खास चोट नहीं आई थी, सिवा उस आदमी को जो अभी-अभी रुपये लेकर हँसी-खुशी ताँगे में सवार हुआ था। दूसरे ताँगे का बाँस उसके सीने में घुस गया था। खून उसके सीने से उबल-उबलकर उसके कपड़ों पर फल रहा था। लोग दौड़कर उसके पास पहुँचे, तो उसने डूबती-लड़खड़ाती आवाज में कहा, बाबाजी को बुलाओ।

लोग बाबा को लेने पुलिस चौकी की ओर दौड़ पड़े और थोड़ी ही देर में उन्हें ले भी आए। बाबा की ओर देखते हुए उसने खून थूककर जैसे-तैसे कहा, ‘बाबाजी। सबके सामने मैं आपसे माफी माँगता हूँ। मुझे माफ कर दो। ये पैसे आपके ही हैं। मैंने बड़ा गुनाह किया कि आप पर इल्जाम लगाया। जब आपने टिकट लेने के लिए बटुआ खोला, तो मैंने नोट गिन लिए थे और उन पर निशान भी देख लिए थे।’

बाबा की आँखों से आँसुओं के दो मोती टूटे... और उस व्यक्ति की गरदन एक ओर लुढ़क गई।

भगवान् की बेआवाज लाठी इतनी असरकारक है, यह सभी देख रहे थे, लेकिन चंद पलों में जो घटना घटित हुई थी उसकी सचाई से इन्कार संभव न था। इस घटना के बारे में सोचकर आज भी दिल इत्मीनान से भर जाता है कि कमजोर व्यक्ति भी बेसहारा नहीं है। भगवान् सबके साथ है और भगवान् की बेआवाज लाठी में बड़ा दम है।


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