अविज्ञात का अद्भुत संसार

August 2001

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साधारण स्थिति में मानवी मन की ज्ञान-परिधि सीमित है। वह असीम को नहीं जान सकता। यदि उसमें जानने की ऐसी क्षमता रही होती, तो दुनिया में आज सब कुछ सुविज्ञात होता, पर विश्व में अब भी ऐसे कितने ही रहस्य मौजूद हैं, जो मानवी बुद्धि के लिए चुनौती बने हुए हैं।

ऐसा ही एक रहस्य कर्नाटक के शिमोला जिले के सपीगेहल्ली गाँव में पाया गया है। यहाँ सघन वन में प्राचीन मंदिर का खंडहर है। खंडहर के निकट ही एक कुआँ है। एक बार विल्फ्रेड नामक एक अँग्रेज शिकारी यहाँ शिकार हेतु आया। मंदिर को छिपने का उपयुक्त स्थान समझकर वह वहीं दुबककर बैठ गया और शेर का इंतजार करने लगा। आधी रात के करीब शेर अचानक कुएँ के नजदीक प्रकट हुआ। वह निशाना साध ही रहा था कि कुएँ के अंदर से सीटी की आवाज सुनाई पड़ी। वह सीटी बड़ी ही सुरीली थी। कुछ क्षण के लिए तो वह उसमें खो-सा गया, तभी पुनः उसे शेर का ध्यान आया। वह कुएँ की ओर मुँह किए निश्चल बैठा था। उसने फिर बंदूक का निशाना साधा। गोली छूटने ही वाली थी कि एक बार पुनः वही मोहक ध्वनि गूँजी। विल्फ्रेड अजीब बेचैनी अनुभव करने लगा। थोड़े अंतराल बाद तीसरी बार सीटी पुनः सुनाई पड़ी। इसी के साथ शेर कुएँ में कूद पड़ा। विल्फ्रेड को भी ऐसा लगने लगा, जैसे वह भी कूप में छलाँग लगा दे । उस ओर वह एक विचित्र खिंचाव महसूस कर रहा था। वह बड़ी मुश्किल से वहाँ से भागने में सफल हुआ। जब निकटवर्ती गाँव पहुँचा, तो लोगों ने बताया कि आज ही के दिन हर वर्ष यहाँ इस घटना की पुनरावृत्ति होती है। लगभग दर्जन भर शिकारियों ने इसी प्रकार अपनी जान गँवा दी। एकमात्र विल्फ्रेड ही ऐसा था, जो वहाँ से जीवित लौट सका।

इससे मिलता-जुलता प्रसंग नीलगिरि का है। यहाँ एक गाँव है, चमनथ। बताया जाता है कि टीपू सुल्तान के समय में यह गाँव एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था और बहुत समृद्ध था। इसके अनेक चिन्ह अब भी वहाँ विद्यमान हैं। इन्हीं में से एक है, काले ग्रेनाइट पत्थरों से बना भव्य मंदिर का भग्नावशेष। समीप ही एक जलाशय है।

कहते हैं जिन दिनों इस ग्राम की यशगाथा गाई जाती थी, उन्हीं दिनों वहाँ एक रहस्यमय बीमारी फली, जिसमें वहाँ की पूरी-की-पूरी आबादी ही समाप्त हो गई। कई साल पश्चात कैप्टन नेड नामक एक अँग्रेज अफसर नीलगिरी में नियुक्त हुआ। बातचीत के दौरान उसे चमनथ में मंदिर की जानकारी मिली। वह एकाँत और प्रकृतिप्रेमी था। एक बार उसने मंदिर के दर्शन का कार्यक्रम बनाया। वहाँ गया और हर दृष्टि से उपयुक्त पाकर उसने वहीं रात बिताने का निश्चय किया।

आधी रात तक सब कुछ सामान्य रहा। मध्यरात्रि के उपराँत मंदिर में रखा पीतल का दीपक अचानक जल उठा और साथ-ही-साथ उसकी ज्वाला से कुछ अस्फुट-सी ध्वनि निकलने लगी।

कैप्टन नेड को हिंदी और संस्कृत से गहरा लगाव था। भारत रहते हुए उसने उन दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। ध्वनि पर ध्यान दिया, तो पता चला यह कोई स्तोत्र पाठ है। गौर करने पर विदित हुआ कि वह रावण-रचित शवि स्तोत्र है, जो अत्यंत मंद स्वर में उच्चरित हो रहा है। स्तोत्र पाठ से नेड ने अंदाज लगाया कि इसे कोई शिवालय होना चाहिए। वे ध्यानपूर्वक उसे सुनते रहे। पाठ समाप्त हुआ, तो दीपक बुझ गया। वह उसे अलादीन का कोई करामाती चिराग समझ बैठा और उठाकर घर ले आया। इसके साथ ही वह बुरी तरह बीमार पड़ गया। बहुतेरे उपचार कराए गए, पर स्थिति सुधरने के स्थान पर गंभीर बनती गई। अंततः एक रात कैप्टन नेड की पत्नी को एक साधु ने सपने में आदेश दिया कि दीपक जहाँ से लाया गया है, वहीं पहुँचा दिया जाए। जीवन-रक्षा का अब यही एकमात्र उपाय है। नेड ने ऐसा ही किया और धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा एवं जल्द ही एकदम ठीक हो गया।

मानवी मन स्थूल जगत् को समझने का एक उपकरण मात्र है। विज्ञान जैसी विधा में इसके इसी स्तर का उपयोग होता है। चूँकि इसमें वह हर कार्य के पीछे स्थूल कारण की तलाश करता है, इसलिए अक्सर रहस्यमय प्रसंगों को सुलझाने में असफल होता है। यह उसके ज्ञात जाग्रत भाग की चर्चा हुई। इस भूमिका से ऊँचा उठकर इसकी प्रसुप्त क्षमता को जगाया जा सके, तो फिर अज्ञात स्तर का रहस्य दुनिया में कुछ भी न रहे। ऐसा अध्यात्म उपचार के बिना संभव नहीं। इसी के माध्यम से योगी-यति सोई पड़ी शक्ति को जगाते और अपने लिए ऋद्धि-सिद्धियों के द्वार खोलते हैं। अविज्ञात को ज्ञात बनाने का यही एकमात्र उपचार है।


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